हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डीके जैन व सचिव परितोष त्रिवेदी ने कुछ दिन पहले मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा से मुलाकात की थी। उन्हें एक मांग पत्र सौंपा था, जिसमें लंबित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष पहल करने का आग्रह किया गया था। चीफ जस्टिस ने बार एसोसिएशन की मांगों को सुनने के बाद निर्णय लिया कि छुट्टी के दिन 10 बेंच लंबित जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट अधिवक्ता संघ द्वारा चीफ जस्टिस से लगातार मांग की जा रही थी। परितोष त्रिवेदी ने कहा कि जमानत याचिकाओं सहित कई महत्वपूर्ण मामले लंबे समय से सुनवाई के लिए अटके हैं। जिससे जेल में कैदियों की संख्या बढ़ ही रही है। लंबित मामले भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। हाईकोर्ट में बढ़ती याचिकाओं को देखते हुए 17 सितंबर से जमानत याचिकाओं की सुनवाई करने वाली एक और बेंच बढ़ा दी है। पहले 3 बेंच सुनवाई करती थी। अब चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा की पहल पर आज शनिवार को 10 बेंच एक साथ जमानत याचिकाओं के लंबित केसों की सुनवाई करेगी। प्रत्येक जज के समक्ष 100 केस होंगे। बार एसोसिएशन ने उम्मीद जताई है कि अगले सप्ताह तक जमानत के सभी केसों का निराकरण हो जाएगा। फिर नए सिरे से केसों की सुनवाई होगी।
31 दिसंबर तक 50 छुट्टियां रहेंगी-
हाईकोर्ट बॉर के सचिव परितोष त्रिवेदी ने बताया कि आने वाले समय में बहुत छुट्टियां है। पहले दशहरा में एक सप्ताह की छुट्टी, फिर दीपावली भी एक सप्ताह कोर्ट बंद और भी अन्य त्योहार है। 31 दिसंबर तक 50 से अधिक छुट्टी हैं। ऐसे में आज जब एक साथ 10 बेंच सुनवाई करेगी तो निश्चित रूप से काफी हद तक लंबित याचिकाओं का निराकरण होगा। परितोष त्रिवेदी ने कहा कि हम चाहते है कि न्याय तुंरत मिलें, क्योंकि दो-तीन माह बाद जेल से छूटता है, तो वह न्याय नहीं कहलाता है। उन्होंने बताया कि ये पहला अवसर है, जब छुट्टी के दिन एक सात 10 बेंच सुनवाई करेगी।
लोक अदालत और मीडिएशन से भी मिली रफ्तार-
बीते सालों में लोक अदालतों और मीडिएशन (सुलह) केंद्रों के जरिए भी मामलों के निराकरण की रफ्तार कुछ हद तक बढ़ी हैए लेकिन केसों की संख्या के अनुपात में यह प्रयास अपर्याप्त साबित हो रहे हैं। बार एसोसिएशन और विशेषज्ञों की मांग है कि शेष 12 स्वीकृत न्यायाधीश पदों पर शीघ्र नियुक्तियां की जाएं ताकि न केवल न्यायपालिका पर दबाव कम हो] बल्कि आम जनता को समय पर न्याय मिल सके। जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की जमानत याचिकाओं पर लंबे समय तक सुनवाई नहीं हो पाती। स्पेशल बेंचों के गठन से इन मामलों के त्वरित निपटारे की उम्मीद है, जिससे न्याय मिलने में देरी नहीं होगी।