भारत बंद : प्रदर्शनकारियों में जगह-जगह रेल रोकी, बिहार-बंगाल में रहा व्यापक असर

नई दिल्ली. देशभर में बुधवार 9 जुलाई को 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच द्वारा भारत बंद का आयोजन किया गया. यह विरोध प्रदर्शन केंद्र सरकार की नई श्रम संहिताओं और आर्थिक नीतियों के खिलाफ था, जिन्हें प्रदर्शनकारियों ने श्रमिकों के अधिकारों के विरुद्ध बताया. इस दौरान कई राज्यों में सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों, बैंकों, बीमा सेवाओं, डाकघर, कोयला खदानों और औद्योगिक गतिविधियों पर असर पड़ा. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने जगह-जगह रेल संचालन  बाधित किया, इसका सर्वाधिक असर बिहार व पश्चिम बंगाल में रहा.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बिहार और पश्चिम बंगाल में भारत बंद' का सबसे ज्यादा असर रेलवे सेवाओं पर देखने को मिला. बिहार के जहानाबाद रेलवे स्टेशन पर राष्ट्रीय जनता दल की छात्र इकाई ने पटरियों पर बैठकर ट्रेनों की आवाजाही रोक दी. वहीं पश्चिम बंगाल में वामपंथी संगठनों से जुड़े प्रदर्शनकारियों ने कई रेलवे स्टेशनों पर ट्रैक जाम किए. कोलकाता के जादवपुर स्टेशन पर तो पुलिस की मौजूदगी के बावजूद लोग ट्रैक पर बैठ गए और रेल सेवाओं को ठप कर दिया. यात्रियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा और कई ट्रेनें रद्द करनी पड़ीं या विलंब से चलीं.

जन परिवहन और दफ्तरों पर पड़ा असर

भारत बंद के चलते सार्वजनिक परिवहन सेवाएं भी बुरी तरह प्रभावित रहीं. कई राज्यों में बस सेवाएं आंशिक या पूरी तरह बंद रहीं. सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक उपक्रमों में कर्मचारियों की उपस्थिति कम देखी गई. बैंकों और बीमा कंपनियों के कार्यालयों के बाहर ताले लटके नजर आए. पोस्ट ऑफिस, कोयला खदान और कई औद्योगिक इकाइयों में कामकाज प्रभावित हुआ. कई जगहों पर कर्मचारियों ने काले बिल्ले लगाकर विरोध जताया. वहीं, केंद्र सरकार ने राज्यों को आवश्यक सेवाओं को चालू रखने के निर्देश दिए थे, लेकिन कई जगह ये निर्देश बेअसर साबित हुए.भारतीय व्यंजनों

ट्रेड यूनियनों ने लगाया आरोप

ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि केंद्र सरकार की नई श्रम संहिताएं श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर करती हैं. उनका कहना है कि इन नीतियों से काम के घंटे बढ़ेंगे, सामाजिक सुरक्षा घटेगी और अनुबंध आधारित नौकरियां बढ़ेंगी. यूनियनों ने आरोप लगाया कि सरकार पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए श्रम कानूनों में संशोधन कर रही है. ट्रेड यूनियनों ने सरकार से तुरंत श्रम कानूनों की समीक्षा करने और जनविरोधी आर्थिक नीतियों को वापस लेने की मांग की है. वहीं सरकार का कहना है कि ये नीतियां रोजगार बढ़ाने और औद्योगिक माहौल को बेहतर बनाने के लिए लाई गई हैं.

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