चीफ इंजीनियर करप्शन कांडःगुम गयी या गुमा दी गयी 'भ्रष्टाचार की फाइल'



 बिजली कंपनी की छवि पर संकटः रिटायरमेंट होने तक मामले को उलझाने के प्रयास जारी, सीएम हाउस से लैटर आने के बाद बावजूद जांच की गति धीमी

जबलपुर। करोड़ों के भ्रष्टाचार के मामलों में घिरे मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के जबलपुर में पदस्थ मुख्य अभियता कांतिलाल वर्मा की जांच जिस ढंग से रेंग रही है,उससे ये तो पुख्ता हो जाता है कि बिजली महकमे में करप्शन की शिकायतों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता। ताजा खबर है कि सीई श्री वर्मा पर जिन मामलों को लेकर गंभीर आरोप लगे हैं, वो फाइल नहीं मिल रही है। जानकार संदेह व्यक्त कर रहे हैं, फाइल गुमी नहीं है,बल्कि उसे गुमा दिया गया है,क्योंकि फाइल मिलने के बाद सारे रहस्य आईने की तरह साफ हो जाएंगे। हैरत की बात ये है कि मुख्यमंत्री कार्यालय से इस प्रकरण में गंभीरता से जांच करने के निर्देश के बावजूद बिजली कंपनी के अधिकारी सुस्त चाल से चल रहे हैं। दरअसल, श्री वर्मा इसी महीने रिटायर होने वाले हैं और मुम्किन है कि उनके निर्बाध रिटायरमेंट के लिए मामले को लटकाया-भटकाया जा रहा है। 

-क्या है फाइल की कहानी

सीएम हाउस से पत्र आने के बाद बिजली कंपनी के मुख्यालय जबलपुर से सागर सीई को इस प्रकरण की जांच रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है। सागर सीई ने तब से अब तक इस दिशा में क्या किया है, ये किसी को खबर तक नहीं है और ना ही इसकी खबर लेने का प्रयास ही किया गया। बताया जाता है कि जब श्री वर्मा सागर में पदस्थ थे, तब वे और वर्तमान सागर सीई के बीच गहरी मित्रता थी। जिस कालखंड के मामलों को लेकर श्री वर्मा पर आरोप लगे हैं, तब श्री वर्मा सागर सीई के पद पर ही तैनात थे। अंदेशा जताया जा रहा है कि जांच  में यही मित्रता बाधा डाल रही है। हालाकि, जानकारों का कहना है कि जल्दी सीएम हाउस से इस संबंध में फिर से जवाब तलब किया जाएगा,तब कंपनी के अधिकारियों को परेशानी होगी। 

-कंपनी की छवि पर सवाल

ये दावा हरगिज नहीं किया जा रहा है कि श्री वर्मा पर जो आरोप लगे हैं वे सही ही हैं,लेकिन इनकी जांच की गति धीमी होने से कई तरह से सवाल-संदेह जरूर  खड़े हो रहे हैं। एक उच्च पद पर बैठे अधिकारी पर करोड़ों के घोटाले का आरोप लगा है और इसके लिए सीएम हाउस से भी पत्र आ चुका है, यदि इसके बाद भी कंपनी ने रिटायरमेंट के पहले जांच समाप्त नहीं की तो कंपनी की छवि पर क्या असर पड़ेगा, ये आसानी से समझा जा सकता है। 

-आरोप, जिनकी जांच होनी है

श्री वर्मा पर आरोप है कि ईको सिटी कॉलोनी एवं मेगा सिटी कॉलोनी के विद्युतीकरण स्वीकृति में भ्रष्टाचार किया। अनुभव चतुर्वेदी की शिकायत पर सीएम जांच हुई। शिकायत में 5 करोड़ का भ्रष्टाचार सामने आया लेकिन तत्कालीन मुख्य प्रबंधक नीता राठौर ने जांच को दबा दिया और छोटे कर्मचारियों पर गाज गिरा दी। बताया गया है कि वर्मा ने डेवलपर से सांठगांठ करके अनुचित लाभ दिया। जबलपुर लोकायुक्त टीम ने छिंदवाड़ा पदस्थ रहते हुए श्री वर्मा के निवास में रेड की थी। प्रकरण भी बना था, लेकिन सबमिट रिपोर्ट को निरस्त करते हुए अमान्य कर दिया था। छिंदवाड़ा जिला जबलपुर रीजन के तहत आता है। लोकायुक्त में प्रकरण दर्ज होने के बाद भी उसी रीजन में पोस्टिंग दी गई। नौकरी में रहते हुए निजी तौर पर दो प्राइवेट कंपनी खोल ली। पहली इनेफा स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड, पूना और दूसरी एस3ए इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रे्क्ट प्राइवेट लिमिटेड, गाजियाबाद। इन कंपनियों का डायरेक्टर सरिता वर्मा को बनाया गया। कंपनी के नियमानुसार प्राइवेट कंपनी के लिए कोई भी अनुमति नहीं ली गई। इन कंपनियों में वर्ष 2017-18 से लगातार काम किया जा रहा है।  छतरपुर में शिवोहम कंस्ट्र्क्शन कंपनी बिना किसी अनुमति के खोल ली गई। इस कंपनी से नियम विरूद्ध सागर रीजन में ट्र्ांसफार्मर लगा दिए गए। शिकायत पर तत्कालीन मुख्य अभियंता सतर्कता पीके क्षत्रीय ने जांच के बाद बताया कि सैकड़ों ट्र्ांसफार्मर निकाल दिए गए। कुछ माह पहले मुख्य अभियंता कार्यालय के सिविल रेनोवेशन के नाम पर एक करोड़ का टेंडर किया गया। टेंडर अपने चहेते ठेकेदार को दे दिया गया था। इन पर आरोप था कि ठेके पर सिर्फ रंगाई-पुताई का काम हुआ है। शेष राशि बंदरबाट कर ली गई।


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