हाईकोर्ट में 7 नवंबर की सुनवाई पर है सबकी नजरें, शिक्षकों को तकनीकी ग्राउंड पर चाहिए राहत, अधिकारी कह रहे, जवाबदेही बढ़ाने जरूरी है ये सिस्टम
जबलपुर। अपने लागू होने के शुरुआती दौर से ही शिक्षा विभाग में विवादित रही ई-हाजिरी प्रणाली को लेकर अभी भी तनातनी जारी है। एक तरफ शिक्षक हाईकोर्ट तक अपनी बात ले जा चुके हैं तो दूसरी ओर स्कूल शिक्षा विभाग भी पीछे हटने तैयार नहीं है। सोमवार को हाईकोर्ट मंे हुए याचिकाकर्ता द्वारा याचिका वापिस लेने के घटनाक्रम के बाद अब सबकी नजरें 7 नवंबर यानी शुक्रवार की सुनवाई पर टिकी हुई हैं। याचिका वापिस लेने को विभाग के अधिकारी अपनी जीत मान रहे हैं।
- किस बात पर है तकरार
जब 20 जून 2025 को ये नया सिस्टम जबलपुर सहित पूरे प्रदेश में लागू हुआ था, तभी से विभाग में इसका विरोध शुरु हुआ है। पहले प्रदेश के कर्मचारी संगठनों के नेताओं के लिए रियायत की मांग की गयी थी,लेकिन विभाग ने दो टूक इंकार कर दिया। इसके बाद तकनीकी रुकावटों की बात की गयी और कहा गया कि शिक्षक स्कूल मंे मौजूद हैं,लेकिन मशीन गैरमौजूद बता रही है। हालाकि, कुछ एक मामलों में शिक्षक सही भी थे,लेकिन औसत देखा जाए तो ई-हाजिरी को कामयाब कहा जा सकता है। जबलपुर जिले में ही ई-हाजिरी का आंकड़ा 70 प्रतिशत से पार हो चुका है, यदि तकनीकी खराबियां आम होती तो ये आंकड़ा इस उंचाई पर नहीं पहुंचता।
-नेटवर्क व स्मार्टफोन न होने की दलील में कितना दम
सोमवार को जिस याचिका को वापिस लिया गया है,उसमें याचिकाकर्ता गेस्ट टीचर को-ऑर्डिनेशन कमेटी अशोकनगर के अध्यक्ष सुनील कुमार सिंह ने 20 जून 2025 को राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत 1 जुलाई 2025 से पूरे प्रदेश में शिक्षकों के लिए ई-अटेंडेंस अनिवार्य कर दी गई थी। दलील दी गई थी कि ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में डिजिटल ढांचा कमजोर है, जिससे मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्टिविटी में गंभीर कठिनाइयां हैं। इसके अतिरिक्त, कई शिक्षक स्मार्टफोन खरीदने में असमर्थ हैं, जिससे उनके लिए ई-अटेंडेंस दर्ज करना व्यावहारिक रूप से कठिन हो जाता है। इन्हीं दलीलों पर आधारित 27 शिक्षकों की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई की जाएगी।
