जबलपुर। जिले में उड़द–मूंग की सरकारी खरीद पर बड़ा घोटाला सामने आया है। फर्जी किसानों की पहचान की जांच तीन महीने से अधूरी पड़ी है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उन्हीं संदिग्ध किसानों को साढ़े 15 करोड़ रुपये का भुगतान पहले ही कर दिया गया। जांच का नतीजा शून्य, भुगतान पूरा,इस पर सवाल उठ रहा है कि आखिर सिस्टम किसके दबाव में काम कर रहा है? रिपोर्ट के अनुसार, जिले में करीब 102 किसानों ने 19 हजार क्विंटल उड़द–मूंग बेचने का दावा किया, जिसमें 87 किसानों पर संदेह है। कृषि विभाग ने जब आंकड़े मिलाए तो बड़ी संख्या में किसान भूमिहीन या फिर अन्य गाँवों में पंजीकृत निकले।इसके बावजूद इन संदिग्ध किसानों के खातों में 15 करोड़ 51 लाख रुपये का भुगतान हो चुका है। जांच दल अभी तक यह तय नहीं कर सका कि इनमें से कौन असली और कौन फर्जी है।
सोसायटी में नाम तो दिखा, लेकिन खेत का पता नहीं!
भेड़ाघाट के निकट बसेड़ी सोसायटी व एमएल टी वेयरहाउस में स्थिति यह रही कि यहाँ 102 किसानों के नाम दिखाए गए, जबकि कई किसान मौके पर मिले तक नहीं आए। खेतों की पड़ताल में यह भी पता चला कि कुछ किसान जिस भूमि पर खेती बताते हैं, वह भूमि या तो किसी और की है, या फिर बंजर पड़ी है।अफसरों के बयान भी विरोधाभासी हैं। कुछ कहते हैं,जांच चल रही है,कुछ का जवाब,डेटा मिलान हो रहा है। तीन महीने बाद भी न तो सूची फाइनल हुई, न ही किसी पर कार्रवाई।। स्थानीय किसानों का आरोप है कि असली किसान लाइन में परेशान हैं, जबकि फर्जी लाभार्थी पैसा लेकर गायब हैं। सरकारी खरीद अभी तक शुरू नहीं हुई, लेकिन भ्रष्टाचार की परतें पहले ही खुलने लगी हैं।
जब जांच पूरी नहीं, तो भुगतान क्यों?
- क्या भुगतान में जल्दबाजी जानबूझकर की गई?
- क्या इसके पीछे दलाल–फर्जी किसानों की लॉबी सक्रिय है?
- क्या अधिकारी दबाव में काम कर रहे हैं?
