भोपाल गैस त्रासदी:हाईकोर्ट ने लगाई रोक, सरकार से मांगी नई जगह की रिपोर्ट, न्यायालय ने की गंभीर टिप्पणी, जब बीस हजार लोगों की जान एक रात में चली गई और लाखों आज भी उसकी सज़ा भुगत रहे हैं, ऐसे में असावधानी नहीं बरतने दे सकते
जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी से निकली ज़हरीली राख को इंदौर के पीथमपुर में दफनाने की राज्य सरकार की योजना पर रोक लगाते हुए कड़ा रुख अपनाया है। जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की खंडपीठ ने 8 अक्टूबर 2025 को पारित आदेश में कहा कि मानव बस्तियों के समीप ऐसा कोई भी ‘टॉक्सिक वेस्ट कंटेनमेंट साइट’ स्थापित नहीं की जा सकती, जिससे किसी भी अप्रत्याशित दुर्घटना की स्थिति में दोबारा कोई त्रासदी घट सकती है।
-एक और त्रासदी को निमंत्रण नहीं दे सकते
अदालत ने राज्य सरकार के उस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया जिसमें यह कहा गया था कि पीथमपुर में प्रस्तावित साइट “आधुनिक सुरक्षा तकनीक” से लैस है। कोर्ट ने कहा कि “जब इस दौर में बारिश में सड़कें बह जाती हैं और पुल ढह जाते हैं, तो राज्य की इंजीनियरिंग क्षमता पर अंधविश्वास करना किसी नए संकट को न्योता देने जैसा होगा।” जस्टिस श्रीधरन ने टिप्पणी की “यूसीआईएल (Union Carbide India Ltd.) का कारखाना भी तब ‘सुरक्षित’ था, जब तक आपदा नहीं आई। जब बीस हजार लोगों की जान एक रात में चली गई और लाखों आज भी उसकी सज़ा भुगत रहे हैं, तब बहुत अधिक सावधानी ही एकमात्र रास्ता है।
-ज़हरीली राख में अब भी पारा, रिपोर्ट ने बताई सच्चाई
इस मामले में हस्तक्षेपकर्ता ने अदालत में दायर रिपोर्ट में बताया गया कि भोपाल यूनियन कार्बाइड परिसर से निकली राख में आज भी मरकरी (पारा) की मात्रा अनुमेय सीमा से कई गुना अधिक है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 12 अगस्त 2025 की रिपोर्ट के अनुसार यह राख अभी भी उच्च स्तर की विषैली है। जो मिट्टी और भू-जल दोनों को प्रदूषित कर सकती है।
-नई जगह तय करें, विशेषज्ञों से मांगे मदद : हाईकोर्ट
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह अगली सुनवाई (20 नवंबर 2025) से पहले वैकल्पिक स्थलों की सूची और तकनीकी मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत करे। साथ ही यह भी स्पष्ट किया जाए कि क्या वैश्विक स्तर की तकनीकी विशेषज्ञ एजेंसियों या कंपनियों से इस कार्य हेतु कोई टेंडर या परामर्श मांगा गया है। 2 दिसंबर 1984 की रात भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली मिथाइल आइसोसायनेट गैस ने लगभग 20 हजार लोगों की जान ली थी, जबकि पांच लाख से अधिक लोग आज भी सांस और दृष्टि संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हैं। हादसे के बाद जो रासायनिक अपशिष्ट और राख बची, वह वर्षों से परिसर में पड़ी है और उसके निपटान को लेकर 2004 से हाईकोर्ट में यह याचिका लंबित है। हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल पर्यावरणीय सुरक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है बल्कि शासन-प्रशासन को यह सख्त संदेश भी देता है कि विकास के नाम पर जनजीवन से समझौता नहीं किया जा सकता। अब समूचे प्रदेश की निगाहें सरकार की उस रिपोर्ट पर टिकी हैं जिसमें वह बताएगी कि ज़हरीली राख आखिर कहां जाएगी।