
नई दिल्ली. सोना, इस समय भारी उथल-पुथल के दौर से गुजऱ रहा है. रिकॉर्ड तोड़ ऊंचाइयों को छूने के बाद, सोने की कीमतों में पिछले 12 सालों की सबसे ज्यादा एक दिनी गिरावट दर्ज की गई है. यह तेज बिकवाली मंगलवार को शुरू हुई और आज बुधवार 22 अक्टूबर को भी जारी रही.
बाज़ार में अचानक आई इस घबराहट का मुख्य कारण निवेशकों द्वारा की जा रही भारी मुनाफावसूली है. इस साल सोने और चांदी की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई थी, जिससे यह चिंता बढ़ रही थी कि कहीं यह एक बबल (बुलबुला) तो नहीं बनता जा रहा. अब वही निवेशक, जो ऊंचे दामों पर बैठे थे, अपना मुनाफा समेटने के लिए बाज़ार में टूट पड़े हैं, जिससे कीमतों का यह क्रैश देखने को मिला है.
रिकॉर्ड स्तर पर हुई जमकर मुनाफावसूली
बाज़ार विश्लेषकों का कहना है कि यह गिरावट मुख्य रूप से प्रॉफिट-टेकिंग की एक लहर है, जो देखते ही देखते सुनामी में बदल गई. केसीएम ट्रेड के मुख्य बाज़ार विश्लेषक टिम वॉटरर के अनुसार, मुनाफावसूली का सिलसिला एक स्नोबॉल (बर्फ के गोले) की तरह बढ़ता गया. उन्होंने कहा कि सोने की कीमतें उस स्तर पर पहुंच गई थीं जो बाज़ार में पहले कभी नहीं देखी गईं, ऐसे में व्यापारियों के लिए मुनाफा काटने का यह एक बड़ा प्रलोभन था.
आंकड़ों पर नजऱ डालें तो, मंगलवार को सोने की कीमतों में 6.3 प्रतिशत तक की भारी गिरावट आई थी, जो पिछले 12 साल में एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट है. यह सिलसिला थमा नहीं और बुधवार को सोना एक समय 2.9 प्रतिशत और टूटकर 4,004.26 प्रति औंस पर आ गया. चांदी की हालत तो और भी खराब रही. पिछले सत्र में 7.1 प्रतिशत लुढ़कने के बाद, चांदी बुधवार को 2 प्रतिशत से ज़्यादा गिरकर 47.6 के आसपास पहुंच गई.
क्या सोने की चमक फीकी पड़ गई?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सोने का सुनहरा दौर (बुल ट्रेंड) खत्म हो गया है? बाज़ार के ज़्यादातर विशेषज्ञ ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि कीमतों में आई यह गिरावट एक करेक्शन (सुधार) है, जो इतने बड़े उछाल के बाद स्वाभाविक है. बाजार के जानकारों का कहना है कि सोने की हालिया रैली असाधारण थी. इसे गिरती ब्याज दरों, दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा लगातार की जा रही खरीदारी और भविष्य में मौद्रिक नीति में और ढील दिए जाने की उम्मीदों से बल मिला था. उन्होंने कहा, बाज़ार शायद ही कभी सीधी रेखा में चलते हैं. यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि व्यापक तेज़ी का रुख खत्म हो गया है.