ट्रेड यूनियनों का भारत बंद 9 को, 25 करोड़ से अधिक कर्मचारियों के भाग लेने की उम्मीद

नई दिल्ली. बैंकिंग, बीमा, डाक सेवाओं से लेकर कोयला खनन तक के क्षेत्रों के 25 करोड़ से ज़्यादा कर्मचारी बुधवार 9 जुलाई को देशव्यापी आम हड़ताल में हिस्सा लेने की उम्मीद हैं. 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने इस हड़ताल को 'भारत बंद' कहा है. जिसका उद्देश्य केंद्र सरकार की मज़दूर विरोधी, किसान विरोधी और राष्ट्र विरोधी कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के खिलाफ़ विरोध करना है.भारतीय व्यंजनों

ट्रेड यूनियनों ने औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों में महीनों की गहन तैयारियों का हवाला देते हुए राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल को एक बड़ी सफलता बनाने का आह्वान किया है. अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) की अमरजीत कौर ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, हड़ताल में 25 करोड़ से अधिक श्रमिकों के भाग लेने की उम्मीद है. देश भर में किसान और ग्रामीण श्रमिक भी विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे. इस व्यापक हड़ताल से प्रमुख सार्वजनिक सेवाओं और उद्योगों पर गंभीर असर पडऩे की संभावना है. हिंद मजदूर सभा के हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा, हड़ताल के कारण बैंकिंग, डाक, कोयला खनन, कारखाने और राज्य परिवहन सेवाएं प्रभावित होंगी.

17 मांगों का चार्टर

अशांति के केंद्र में पिछले साल यूनियनों द्वारा श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया को सौंपी गई 17 मांगों का एक चार्टर है. यूनियनों का दावा है कि सरकार ने इन मांगों को नजऱअंदाज़ किया है और पिछले एक दशक से वार्षिक श्रम सम्मेलन आयोजित करने में विफल रही है - उनका कहना है कि यह कदम श्रम बल के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाता है. 

एक संयुक्त बयान में, फोरम ने आरोप लगाया कि सरकार के श्रम सुधार, जिसमें चार नए श्रम कोड शामिल हैं, श्रमिकों के अधिकारों को खत्म करने के लिए बनाए गए हैं. यूनियनों का तर्क है कि इन कोडों का उद्देश्य सामूहिक सौदेबाजी को खत्म करना, यूनियन गतिविधियों को कमजोर करना, काम के घंटे बढ़ाना और नियोक्ताओं को श्रम कानूनों के तहत जवाबदेही से बचाना है. फोरम ने कहा कि सरकार ने देश के कल्याणकारी राज्य के दर्जे को त्याग दिया है और वह विदेशी तथा भारतीय कॉरपोरेट्स के हित में काम कर रही है, तथा यह उसकी नीतियों के जोरदार क्रियान्वयन से स्पष्ट है.भारतीय व्यंजनों

पिछले साल 16 फरवरी में बुलाया था भारत बंद

बयान में कहा गया है कि संसद द्वारा पारित चार श्रम संहिताओं का उद्देश्य ट्रेड यूनियन आंदोलन को दबाना और पंगु बनाना, काम के घंटे बढ़ाना, श्रमिकों के सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार, हड़ताल के अधिकार को छीनना और नियोक्ताओं द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन को अपराधमुक्त करना है. यूनियन नेताओं ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि श्रमिक यूनियनों के संयुक्त मोर्चे ने इस हड़ताल को समर्थन दिया है और ग्रामीण भारत में बड़े पैमाने पर लामबंदी करने का फैसला किया है. ट्रेड यूनियनों ने इससे पहले 26 नवंबर, 2020, 28-29 मार्च, 2022 और पिछले साल 16 फरवरी को इसी तरह की देशव्यापी हड़ताल की थी.

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