रेप पीडि़ताओं की मेडिकल जांच में प्रेग्रेंसी टेस्ट अनिवार्य, हाईकोर्ट ने दिए आदेश,

 

जबलपुर। हाईकोर्ट में नाबालिगा रेप पीडि़ता किशोरियों से जुड़े गर्भपात के मामले लगातार सामने आ रहे है। जिसे देखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि मेडिकल जांच के दौरान ही पीडि़ता का प्रेग्नेंसी टेस्ट कराया जाए।

                                   वर्तमान में जांच में देरी व कोर्ट की मंजूरी के चलते गर्भपात पर निर्णय लेने में देर होती है। जिसका प्रभाव पीडि़ता के जीवन पर भी पड़ता है। हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश के डीजीपी को निर्देश दिए हैं कि आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए सभी जिलों के एसपी को यह निर्देश दिए जाएं कि नाबालिग रेप पीडि़ता की मेडिकल जांच के समय ही प्रेग्नेंसी टेस्ट किया जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि यह निर्देश पीडि़ता के हित में हैं। इस बात का ध्यान रखते हुए दिए गए हैं कि यदि पीडि़ता और उसके माता-पिता गर्भपात कराने के लिए तैयार हों, तो गर्भ को जल्द से जल्द समाप्त करना सुरक्षित रहेगा। कई बार जब तक परिवार को गर्भावस्था का पता चलता है और वे कोर्ट से गर्भपात की मंजूरी मांगते हैं, तब तक गर्भ काफी बढ़ चुका होता है। हाईकोर्ट ने फरवरी 2025 में एक गाइडलाइन जारी की थी। इसके अनुसार यदि नाबालिग लड़की 24 सप्ताह या उससे ज्यादा गर्भवती हो, तो गर्भपात के लिए हाईकोर्ट से अनुमति जरूरी है। जिला अदालतों को भी ऐसे मामलों में सावधानी से काम लेने को कहा गया है। इस मामले में सरकार की ओर से बताया गया कि 24 सप्ताह के बाद गर्भावस्था को समाप्त करना जोखिम भरा होता है। भ्रूण 6 या 7 सप्ताह के बाद जीवित हो जाता है और जब भ्रूण पहले से ही जीवित होता है, तब देर से गर्भावस्था को समाप्त करने का निर्णय और भी जटिल हो जाता है। इससे पीडि़ता और जीवित भ्रूण दोनों को खतरा होता है। सिहोर जिला कोर्ट से पास्को एक्ट का एक मामला हाईकोर्ट पहुंचा था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि पीडि़ता का गर्भ 24 सप्ताह से अधिक का है। मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार यदि गर्भपात कराया जाता है तो यह हाई रिस्क होगा और पीडि़ता की जान को भी खतरा हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि नाबालिग की कम उम्र के कारण गर्भ जारी रखना भी खतरनाक है। मेडिकल रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि कोर्ट अनुमति देगा, तभी गर्भपात या गर्भ जारी रखने का निर्णय लिया जा सकेगा।


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