बालाघाट। एमपी के बालाघाट में नक्सल इतिहास में पहली बार एक साथ 10 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। इनमें 77 लाख रुपए का इनामी हार्डकोर नक्सली सुरेंद्र उर्फ कबीर भी शामिल है। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को इन नक्सलियों ने अपने हथियार सौंपे। इन सभी नक्सलियों पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र में 2 करोड़ 36 लाख का इनाम घोषित है। इनमें चार महिला और छह पुरुष नक्सली हैं। नक्सलवादियों ने दो एके 47, दो इंसास रायफल, एक एसएलआर, दो एसएसआर, सात बीजीएल सेल व चार वॉकीटाकी पुलिस को सौंपे हैं।
सीएम डॉ. यादव ने कहा कि बालाघाट जोन में इस साल अब तक 10 हार्डकोर नक्सली मारे जा चुके हैं। इन पर 1.86 करोड़ का इनाम था। लगातार अभियान चलने का परिणाम है कि अनंत और विकास ने आत्मसमर्पण किया था, मंडला, डिंडौरी डेंजर जोन से बाहर आए हैं। अगले साल जनवरी तक प्रदेश सरकार केंद्रीय मंत्री के सपने को सच करने की शुरुआत बालाघाट से करेगी। सभी आत्मसमर्पित करने वाले नक्सलियों का पुनर्वास किया जाएगा। उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जाएगा। सीएम ने कहा कि किसी भी हालत में लाल सलाम को सलाम नहीं किया जाएगा। बालाघाट समेत पूरे क्षेत्र में हथियार उठाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। सरेंडर करने वालों में कान्हा भोरमदेव (केबी) डिवीजन के लीडर कबीर उर्फ महेंद्र और उसके नौ साथी शामिल हैं। इनमें 4 महिला व 6 पुरुष नक्सली हैं। कबीर पर एमएमसी जोन में मध्यप्रदेश में 12 लाखए छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में 25.25 लाख रुपए का इनाम घोषित है। वनकर्मी गुलाब उईके ने बताया कि दो नक्सली कैंप में पहुंचे थे। करीब रात 8 बजे वह मुझे जंगल में ले गए। जहां उन्होंने बताया कि उन्हें छत्तीसगढ़ के रेनाखाड़ में सरेंडर करना है। क्या हमें छोड़ दोगे वहां वाहन से। मैंने कहा मैं वहां नहीं ले जा सकता हूं, लेकिन तुम कहो तो मंडला या बालाघाट ले जा सकता हूं सरेंडर के लिए। ग्रामीणों ने सपोर्ट देने से सफलता मिली-
एसडी आदित्य मिश्रा ने बताया है कि 1980 के बाद ये मध्यप्रदेश के लिए बड़ा दिन है। तब नक्सलियों की गिनती तीन संख्या में होती होती थी, अब सिर्फ दो संख्या के बराबर ही रह गई है। बड़े स्तर पर ऑपरेशन चलने से और पुलिस के कैंप ग्रामीण क्षेत्रों में खुलने से इनका सपोर्ट कम हुआ है। जब इनके शीर्ष नेतृत्व के सरेंडर करने के बाद ग्रामीणों ने भी इनको सपोर्ट देना बंद कर दिया। इसके बाद इन्होंने भी सरेंडर करना बेहतर समझा। इनके पुनर्वास के लिए जो नीति 2023 से बनी है। उसके अनुसार ही इनका पुनर्वास होगा।
सुरक्षाबलों के दबाव में नक्सलियों ने छोड़े हथियार-
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह सरेंडर प्रदेश की नक्सल आत्मसमर्पण नीति से प्रभावित होकर हुआ है। मार्च 2026 तक नक्सलियों के खात्मे की तय समय-सीमा व जंगलों में सुरक्षाबलों के बढ़ते दबाव के कारण नक्सलियों ने सशस्त्र हिंसा छोड़कर बातचीत के जरिए सरेंडर का निर्णय लिया। यह घटनाक्रम बीती रात लांजी के छत्तीसगढ़ सीमा से लगे माहिरखुदरा में हुई पुलिस-नक्सली मुठभेड़ के बाद सामने आया है। मुठभेड़ के बाद देर रात करीब 10 बजे इन नक्सलियों ने बालाघाट में पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया।