जबलपुर। कड़ाके की ठंड और बर्फीली शीत लहर ने शहर को अपनी आगोश में ले लिया है, लेकिन इस हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में सबसे बुरा हाल उन बदनसीबों का है जिनके सिर पर न छत है, न तन पर पर्याप्त कपड़े। कैंटोनमेंट क्षेत्र की सड़कों और फुटपाथों पर रहने वाले दर्जनों बेघर लोग आज भगवान भरोसे हैं। यहाँ मासूम बच्चे और बुजुर्ग फटे कंबलों के सहारे रात काटने को मजबूर हैं, जबकि प्रशासन फाइलों और कागजी नियमों में उलझा हुआ है।
विज्ञापन के लिये उपलब्ध है जमीन
इस मौसम में तस्वीरें विचलित करने वाली हैं। पेंटी नाका चौक, चौपाटी और कटंगा मार्ग के फुटपाथों पर छोटे-छोटे बच्चे खुले आसमान के नीचे ठिठुर रहे हैं। भोर होते-होते जब पारा 9 से 10 डिग्री तक गिर जाता है, तब इन बेघरों के पास सिवाय थरथराने के और कोई विकल्प नहीं बचता। विडंबना देखिए कि 4-5 साल पहले तक 'एम्पायर तिराहे' पर गरीबों के लिए अस्थाई रैन बसेरे बनते थे, लेकिन अब कैंट प्रशासन ने जमीन की कमी का हवाला देकर इसे बंद कर दिया है। हैरानी की बात यह है कि विज्ञापन के होर्डिंग्स लगाने के लिए प्रशासन को जमीन मिल जाती है, लेकिन इंसानी जिंदगियों को बचाने के लिए कुछ गज जमीन मयस्सर नहीं हो रही। कैंट एक्ट में स्पष्ट प्रावधान होने के बावजूद अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से मुंह फेरे हुए हैं। जन प्रतिनिधियों की चुप्पी भी इस त्रासदी को और गहरा कर रही है। एक तरफ नगर निगम अपने क्षेत्रों में रैन बसेरे चला रहा है, वहीं कैंट क्षेत्र के ये बेबस लोग सिस्टम की बेरुखी के बीच अपनी जान हथेली पर रखकर रात गुजार रहे हैं।

