जबलपुर। जगतगुरु रामभद्राचार्य जी महाराज के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी करने के मामले में जगद्गुरु राघवाचार्य की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। जबलपुर के सत्र न्यायालय ने निचली अदालत के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें क्षेत्राधिकार का हवाला देते हुए परिवाद पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया गया था। अब इस मामले की नए सिरे से सुनवाई के आदेश दिए गए हैं।
-विवाद की जड़: 'ब्रह्म सूत्र' भाष्य पर टिप्पणी और अपमानजनक शब्द
यह पूरा मामला जबलपुर निवासी और बीएसएनएल कर्मचारी नेता राम प्रकाश अवस्थी द्वारा दायर एक दाण्डिक परिवाद से जुड़ा है। अवस्थी, जो जगद्गुरु रामभद्राचार्य के दीक्षित शिष्य हैं, उन्होंने आरोप लगाया कि राघवाचार्य ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर उनके गुरु के खिलाफ अनर्गल और अपमानजनक बयान दिए। आरोप के मुताबिक, राघवाचार्य ने रामभद्राचार्य जी द्वारा 'ब्रह्म सूत्र' पर लिखे गए भाष्य को 'कचरा' बताया था। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा था कि एक दृष्टिहीन व्यक्ति को आचार्य बनने का अधिकार नहीं है और उन्हें 'स्वयंभू संत' करार दिया था। परिवादी का तर्क है कि पद्म विभूषण से सम्मानित जगद्गुरु के खिलाफ ऐसी टिप्पणी न केवल उनके शिष्यों, बल्कि संपूर्ण सनातन धर्म का अपमान है।
क्षेत्राधिकार के आधार पर निरस्त हुआ पुराना आदेश
इससे पहले, न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने इस केस को यह कहकर खारिज कर दिया था कि वीडियो उनके क्षेत्राधिकार का नहीं है और अनावेदक भी क्षेत्र से बाहर है। इस आदेश को अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय के माध्यम से जिला सत्र न्यायालय में चुनौती दी गई।सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न दृष्टांतों और राहुल गांधी मानहानि केस का हवाला देते हुए तर्क दिया कि चूंकि परिवादी जबलपुर में रहता है और अपमानजनक वीडियो यहीं देखा गया है, इसलिए स्थानीय अदालत को सुनवाई का पूरा अधिकार है। 28वें सत्र न्यायाधीश प्रवेंद्र कुमार सिंह ने इन तर्कों को स्वीकार करते हुए मजिस्ट्रेट के आदेश को 'अवैध' करार दिया और निर्देश दिया कि इस मामले में नए सिरे से गुण-दोष के आधार पर सुनवाई की जाए।
