पर्यावरण नियमों की अनदेखी पर एनजीटी का कड़ा रुख, कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों पर हलफनामा देने का आदेश


फ्लाई ऐश और पर्यावरण नियमों के उल्लंघन पर एनजीटी सख्त, एमपी प्रदूषण बोर्ड से मांगा उद्योगों का ब्यौरा

जबलपुर।  राष्ट्रीय हरित अधिकरण की प्रधान पीठ ने फ्लाई ऐश (राख) के निपटान, कोयला परिवहन और खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़े गंभीर पर्यावरणीय मुद्दों पर पुनः सुनवाई शुरू कर दी है। न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव (अध्यक्ष) और डॉ. ए. सेंथिल वेल (विशेषज्ञ सदस्य) की पीठ ने इस मामले में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को कड़े निर्देश जारी किए हैं।

​सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दोबारा शुरू हुई प्रक्रिया

उल्लेखनीय है कि एनजीटी ने पूर्व में 18 जनवरी 2022 को इन मामलों का निपटारा कर दिया था। हालांकि, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 5 जुलाई 2023 को उस आदेश को निरस्त कर दिया। शीर्ष अदालत का मानना था कि विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर संबंधित पक्षों को आपत्तियां दर्ज करने का पर्याप्त अवसर नहीं मिला, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है। इसी निर्देश के आलोक में एनजीटी अब नए सिरे से इन मामलों की समीक्षा कर रहा है।

​प्रदूषण बोर्डों को छह सप्ताह की मोहलत

सुनवाई के दौरान अधिकरण ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड  और मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सख्त निर्देश दिए हैं। दोनों बोर्डों को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले उन सभी उद्योगों का पूरा विवरण एक सारणी के रूप में प्रस्तुत करना होगा, जो फ्लाई ऐश और खतरनाक अपशिष्ट के प्रबंधन से जुड़े हैं। इसके लिए छह सप्ताह का समय दिया गया है।

​कोयला परिवहन और मरकरी स्लज पर भी नज़र

सुनवाई में नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड और ग्रासिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मामलों पर भी चर्चा हुई। हालांकि इनके कुछ मुद्दे सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं, लेकिन अधिकरण फ्लाई ऐश निपटान जैसे अन्य विषयों पर निर्णय लेने की दिशा में आगे बढ़ेगा। एनजीटी ने इन कंपनियों को भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित अपीलों का स्पष्ट दायरा हलफनामे के जरिए बताने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 16 मार्च 2026 को तय की गई है।

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