इंदौर। एमपी के इंदौर में एक मां जागृति कुशवाहा ने मौत से जंग जीतकर जुड़वा बच्चों को जन्म दिया है। महिला शादी के सात साल बाद गर्भवती हुई, इस दौरान महिला के सामने गंभीर स्थितियां बनी, डाक्टरों ने प्रेग्रेंसी टर्मिनेट करने की सलाह दी, फिर भी महिला ने इंकार कर दिया।
बताया गया है कि इंदौर निवासी जागृति कुशवाहा उम्र 35 वर्ष के पति एक हॉस्पिटल में बायो मेडिकल इंजीनियर है। दंपती को सात साल तक कोई संतान नहीं हुई। फिर इस साल जागृति गर्भवती हुई। चार माह तक सब कुछ अच्छा था। 18वें हफ्ते में उसे ब्लीडिंग होने लगी। अगस्त में उसे विशेष ज्यूपिटर हॉस्पिटल में एडमिट कराया। यहां पता चला कि इन्फेक्शन के कारण उसकी दोनों किडनियां खराब हैं। हालत नाजुक होने पर डॉक्टरों ने गर्भ समापन की सलाह दी, लेकिन जागृति अपने फैसले पर अडिग रही। पांचवें माह में डायलिसिस के दौरान उसे कार्डियक अरेस्ट आ गया और करीब सात मिनट तक उसकी सांसें थम गईं। तत्काल सीपीआर दिया गया, इसके बाद उसकी सांसें लौट सकीं। फिर सातवें माह में जागृति को पीलिया हो गया। जिससे गर्भस्थ शिशुओं की जान पर भी खतरा मंडराने लगा। हालात को देखते हुए डॉक्टरों को डिलीवरी करानी पड़ी। महिला के हौसले और डॉक्टरों की निगरानी के बीच आखिरकार जुड़वां बच्चों एक बेटा और एक बेटी का जन्म हुआ। दोनों नवजात स्वस्थ हैं। बच्चों के जन्म के बाइ परिवार में खुशियों का माहौल है। डॉक्टरों का दावा है कि मेडिकल लिटरेचर में यह अपनी तरह का दुनिया का पहला मामला है।
प्रतिदिन 6 घंटे तक होता रहा डायलिसिस-
जागृति के शरीर में फैले इन्फेक्शन से लिवर में इंजुरी हो गई और मल्टी ऑर्गन्स फैलियर की स्थिति हो गई। डॉक्टरों के मुताबिक आमतौर पर सामान्य जन में किडनी खराब होने पर खतरा तो रहता ही है। लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान 10 गुना बढ़ जाता है। इस पर तत्काल जागृति का डायलिसिस शुरू किया गया। इसके साथ ही एंटीबायोटिक्स दिए गए। रोज छह घंटे डायलिसिस शुरू हो गया। विशेषज्ञों की माने तो यदि कोई मरीज डायलिसिस पर चार हफ्ते से ज्यादा निकालता है और किडनी में रिकवरी नहीं होती है तो बायोप्सी की जाती है। 22वें हफ्ते में जागृति की बायोप्सी कराई जो काफी जोखिमपूर्ण थी। डॉक्टरों के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था। इसकी रिपोर्ट में पता चला कि अब दोनों किडनियां रिकवर नहीं हो सकती।
जागृति बोली, मेरे लिए बच्चे अनमोल है-
जागृति का कहना था कि उनके लिए बच्चे अनमोल हैं, क्योंकि सात साल बाद वह गर्भवती हुई है। वह चाहती है कि उसकी डिलीवरी ही हो और घर में किलकारियां गूंजे। रोज डायलिसिस की स्थिति में जागृति की मॉनिटरिंग की गई। 24वें हफ्ते में जागृति के लंग्स में पानी भरने के कारण ऑक्सीजन कम हो गई। सांस लेने में तकलीफ होने के दौरान उन्हें वेंटिलेटर पर लिया गया। इस दौरान हार्ट बंद हो गया तो डॉक्टरों ने उसे 7 मिनट तक सीपीआर दियाए सांसें लौट गई। 7 मिनट के दौरान हार्ट बंद ही रहा। सांस लौटने के बाद उन्हें 24 घंटे वेंटिलेटर पर ही रखना पड़ा। डॉक्टरों के लिए यह बड़ी चुनौती रही। जागृति और उसके पति ने कहा कि डॉ सनी मोदी और डॉ जयश्री श्रीधर व टीम को बहुत-बहुत धन्यवाद देते हैं।