ई-अटेंडेंस अनिवार्यता पर सरकार का विस्तृत जवाब,एप सुरक्षित, डेटा चोरी की आशंका नहीं, अगली सुनवाई कल
जबलपुर। मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के लिए ई-अटेंडेंस अनिवार्यता को लेकर दायर याचिकाओं पर बुधवार को हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति मनिंदर सिंह भट्टी की एकलपीठ के समक्ष राज्य शासन ने पूर्व निर्देश के पालन में विस्तृत जवाब पेश किया।सरकार ने अपने लिखित उत्तर में कहा कि शिक्षकों द्वारा उठाए गए अधिकांश मुद्दे तथ्यों पर आधारित नहीं, बल्कि “तकनीकी कारणों का बहाना” हैं। शासन ने साफ किया कि प्रदेश के किसी भी जिले में मोबाइल नेटवर्क की कोई गंभीर समस्या नहीं है और अधिकांश शिक्षक प्रतिदिन बिना परेशानी के ई-अटेंडेंस दर्ज कर रहे हैं। सरकार ने आगे कहा कि ई-अटेंडेंस एप (हमारे शिक्षक एप) का डेटा सेफ्टी सर्टिफिकेशन कराया गया है, इसलिए डेटा चोरी या दुरुपयोग की कोई आशंका नहीं है। शासन ने शिक्षकों के इन तर्कों को भी खारिज कर दिया कि उनके पास स्मार्टफोन नहीं है, फोन एंड्रॉइड नहीं है या रिचार्ज कराना मुश्किल है। सरकार के अनुसार ये “केवल बहाने” हैं। सरकार ने अदालत को यह भी याद दिलाया कि वर्ष 2017 में हाई कोर्ट खुद ई-अटेंडेंस को हरी झंडी दे चुका है, और प्रदेश के अन्य विभागों में वर्षों से यह प्रणाली लागू है, जहाँ कोई तकनीकी समस्या नहीं पाई गई।
शिक्षकों का पक्ष: नेटवर्क समस्या और डेटा सुरक्षा पर उठाए सवाल
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता शिक्षकों की ओर से अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने तर्क दिया कि जमीनी स्थिति सरकार के दावों से बिल्कुल अलग है। कई जिलों में सरकारी स्कूल दूरदराज के इलाकों में स्थित हैं, जहाँ नेटवर्क बार-बार जाता है, जिससे उपस्थिति दर्ज कराना मुश्किल हो जाता है। याचिकाकर्ताओं, जिनमें जबलपुर के मुकेश सिंह वरकड़े, सतना के सत्येंद्र तिवारी सहित 27 शिक्षक शामिल हैं, ने शपथ पत्र में कहा कि,कई स्कूलों में इंटरनेट न के बराबर है,एप बार-बार हैंग होता है,डेटा अपलोड नहीं होता,और निजी मोबाइल में सरकारी एप इंस्टॉल करवाना डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 के प्रावधानों का उल्लंघन है। शिक्षकों ने कहा कि मोबाइल में पहले से बैंकिंग और व्यक्तिगत ऐप्स जुड़े होते हैं, ऐसे में सरकारी एप की अनिवार्यता निजी डेटा जोखिम बढ़ाती है।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें रिकॉर्ड पर लीं
अदालत ने सरकार का जवाब रिकॉर्ड पर लेते हुए अगली सुनवाई 27 नवंबर के लिए नियत कर दी है। अब इस मामले में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कोर्ट शिक्षकों के तकनीकी और डेटा सुरक्षा संबंधी तर्कों को कितनी गंभीरता से लेता है और सरकार की दलीलों को कितना वज़न देता है।
