जबलपुर। मध्यप्रदेश में लागू नई प्रमोशन में आरक्षण नीति एक बार फिर न्यायालय की कसौटी पर है। जबलपुर हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता संगठन सपाक्स (सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संघ) ने राज्य सरकार की प्रमोशन पॉलिसी को सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के खिलाफ बताते हुए इसे चुनौती दी।सपाक्स की ओर से उपस्थित अधिवक्ताओं ने कोर्ट में कहा कि राज्य सरकार ने नई नीति लागू करते समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए मानकों—प्रतिनिधित्व, दक्षता, बैकलॉग और विस्तृत डेटा संग्रह का पालन नहीं किया। उनका आरोप है कि सरकार ने बिना पर्याप्त आंकड़े जुटाए प्रमोशन पॉलिसी लागू कर दी, जो कानूनन गलत है। याचिकाकर्ता पक्ष ने दलील दी कि सुको ने जर्नल सिंह, नगरा जजमेंट और अन्य फैसलों में स्पष्ट किया है कि आरक्षण आधारित प्रमोशन केवल स्पष्ट, सटीक और अद्यतन डेटा के आधार पर ही लागू किया जा सकता है। लेकिन मध्यप्रदेश में यह प्रक्रिया प्रतिबंधित मानदंडों के अनुरूप नहीं हुई।
-अगली पेशी में विस्तारपूर्वक रखेंगे पक्ष
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद मामले की अगली सुनवाई दिसंबर के पहले हफ्ते में तय की है। इस सुनवाई में याचिकाकर्ता सपाक्स के वकील अपनी बात पूरी करेंगे। इसके बाद राज्य सरकार अपना पक्ष प्रस्तुत करेगी। सपाक्स ने प्रमोशन नीति को पूर्णतः असंवैधानिक बताते हुए इसे निरस्त करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि नीति लागू करने से पहले शासन को विस्तृत जातिगत प्रतिनिधित्व का विश्लेषण,विभागवार बैकलॉग का परीक्षण,प्रशासनिक दक्षता की जाँच,और सभी संवर्गों में समान अवसर सुनिश्चित करने का दायित्व पूरा करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर अधिकारी-कर्मचारियों के बीच गहरी दिलचस्पी बनी हुई है, क्योंकि इसका प्रभाव राज्य की सभी विभागीय प्रमोशन प्रक्रियाओं पर पड़ेगा।
