नई दिल्ली. बिहार के गया जिले के गुरारू प्रखंड के कोंची गांव में एक ऐसी अनोखी घटना देखने को मिली जिसने सभी को हैरान कर दिया। यहां 74 वर्षीय भूतपूर्व वायुसेना कर्मी मोहनलाल ने जीवित रहते ही अपनी अंतिम यात्रा निकाली। बैंड-बाजे की धुन और राम नाम सत्य है के नारों के बीच, फूलों से सजी अर्थी पर लेटे मोहनलाल मुक्तिधाम पहुंचे, जबकि पीछे-पीछे चल उड़ जा रे पंछी, अब देश हुआ बेगाना की धुन पूरे माहौल को भावुक बना रही थी।
हुआ प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार
मोहनलाल ने अपने गांववालों, रिश्तेदारों और मित्रों को अंतिम यात्रा में शामिल होने का न्योता दिया था। गांव में पहले तो यह खबर मज़ाक जैसी लगी, लेकिन जब लोग पहुंचे तो पूरा माहौल सन्न रह गया, सामने मोहनलाल फूलों की अर्थी पर लेटे हुए थे, और उनके पीछे सैकड़ों लोग राम नाम सत्य है, का जाप करते हुए चल रहे थे। मुक्तिधाम पहुंचने पर मोहनलाल स्वयं अर्थी से उठे, और उनकी जगह एक प्रतीकात्मक पुतला रखकर उसका दाह संस्कार किया गया। पूरी विधि-विधान से चिता जलाई गई, राख को नदी में प्रवाहित किया गया और अंत में सभी के लिए सामूहिक भोज का आयोजन हुआ।
मरने के बाद नहीं देख पाते कि कौन आया, इसलिए जिंदा रहते देखना चाहा
मोहनलाल ने बताया कि उन्होंने यह अनोखा कदम इसलिए उठाया क्योंकि इंसान मरने के बाद नहीं देख पाता कि उसकी अंतिम यात्रा में कौन शामिल हुआ। मैं चाहता था कि अपनी आंखों से देख सकूं कि कौन मुझे स्नेह और सम्मान देता है। मोहनलाल न केवल समाजसेवी हैं, बल्कि उन्होंने अपने खर्चे से गांव में सुविधायुक्त मुक्तिधाम भी बनवाया था ताकि बरसात के दिनों में शवदाह में लोगों को परेशानी न हो। ग्रामीणों का कहना है कि उनका यह कदम पूरे क्षेत्र के लिए प्रेरणास्रोत है।