महिला रेल अफसर का शादी के बाद दिखा गंदा चेहरा, पति, सास को गालियां, हाईकोर्ट ने दिया ये आदेश

नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के बीच विवाद का एक हैरान करने वाला मामला सामने आया। इस मामले की तह तक जाने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के बीच तलाक को मंजूरी दे दी। इससे पहले फैमिली कोर्ट ने भी दोनों का तलाक मंजूर किया था, लेकिन पत्नी ने फैमिली कोर्ट के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में बेबुनियाद बताते हुए चुनौती दी थी।  इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस (आईआरटीएस) अधिकारी महिला ने पति को कुतिया का बेटा, कमीना व सास को भी गालियां देती थी.

मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पति के अधिकारों को चुनौती देना और उसकी मां के खिलाफ अपमानजनक व निंदनीय आरोप लगाना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। यह अपराध विवाह विच्छेद (तलाक) का पर्याप्त आधार है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

जानिए क्या है पूरा मामला?

दरअसल, दिल्ली निवासी एक महिला भारतीय रेलवे यातायात सेवा (आईआरटीएस) की ग्रुप ए अधिकारी है। पहली शादी नष्ट होने के बाद रेलवे अधिकारी महिला ने एक वकील के साथ जनवरी 2010 में विवाह किया था, लेकिन महज 14 महीने बाद मार्च 2011 में वे अलग हो गए। यह दोनों की दूसरी शादी थी। इसके बाद 12 साल तक दोनों में वाद-विवाद का दौर चलता रहा। इसी बीच साल 2023 में फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में तलाक का आदेश दे दिया। इसमें पत्नी द्वारा की गई मानसिक क्रूरता को आधार बनाया गया।

महिला से अपमानजनक संदेशों को कोर्ट ने माना आधार

दिल्ली हाईकोर्ट में पति ने रेलवे अधिकारी पत्नी के खिलाफ साक्ष्य पेश किए। अदालत ने प्रस्तुत साक्ष्यों में पाया कि महिला ने पति को कई घृणित, अपमानजनक और निंदनीय संदेश भेजे थे। इनमें पति को पत्नी ने कमीना और कुतिया का बेटा कहकर संबोधित किया था। इसके साथ ही पत्नी ने पति को भेजे व्हाट्सएप संदेशों में उसकी मां को वेश्यावृत्ति के माध्यम से कमाई करने की सलाह तक दे डाली।

अत्यंत आहत करने वाले हैं पत्नी के शब्द: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने मौजूदा साक्ष्यों पर गौर करते हुए कहा कि एक वन क्लास अफसर महिला के ऐसे शब्द मानसिक रूप से अत्यंत आहत करने वाले हैं और इस प्रकार का व्यवहार किसी भी व्यक्ति के आत्मसम्मान को गहराई से ठेस पहुंचाता है। यह मानसिक क्रूरता का सबसे गंभीर स्वरूप है। इसी के साथ हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए पति को तलाक की अनुमति दी। कोर्ट ने कहा कि विवाह संस्था आपसी सम्मान, सहनशीलता और विश्वास पर टिकी होती है, जब ये मूल तत्व नष्ट हो जाएं तो विवाह को केवल औपचारिक रूप से जीवित रखना उचित नहीं है।

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