गर्भपात से जच्चा-बच्चा दोनों को खतरा,नहीं दे सकते इजाजत

 


हाई कोर्ट का दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग के मामले में अहम फैसला

जबलपुर । हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल व न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह की युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि गर्भपात से नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता व गर्भ में पल रहे शिशु के जीवन खतरा है। लिहाजा, गर्भपात की अनुमति प्रदान करना व्यवहारिक नहीं होगा। दरअसल, सतना जिला न्यायालय ने 15 वर्ष आठ माह की दुष्कर्म पीड़िता के गर्भवती होने के संबंध में हाई कोर्ट को पत्र के माध्यम से सूचित किया था। हाई कोर्ट ने पत्र की सुनवाई संज्ञान याचिका के रूप में करते हुए पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पेश करने के आदेश जारी किए थे। मेडिकल बोर्ड के द्वारा पेश की गयी रिपोर्ट में बताया गया कि पीडिता की गर्भावस्था 36 सप्ताह की है और उसका हिमोग्लोबिन निर्धारित से कम है। पीड़ता व उसके अभिभावक को समझाया गया कि गर्भपात के सभी पहलुओं के संबंध में बताया गया। गर्भावस्था अधिक होने के कारण गर्भपात में पीड़ित तथा भ्रूण दोनो को जान का खतरा है। जिसके बाद पीड़िता व उसके अभिभावक ने बच्चे को जन्म देने के लिए सहमति प्रदान कर दी। किंतु वे बच्चे को साथ में नही रखना चाहते। जिसके ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि बच्चे के जीवित पैदा होने पर स्तनपान के लिए 15 दिनों तक पीड़िता के पास रखा जाए। इसके बाद उसे सीडब्ल्यूसी सतना के अधिकारियों को सौंप दिया जाए। बच्चे के पालन-पोषण के लिए हर संभव सावधानी बरती जाए। सीडब्ल्यूसी को बच्चे को बच्चे को किसी भी इच्छुक परिवार को गोद देने या राज्य सरकार को सौंपने की स्वतंत्रता होगी।

Post a Comment

Previous Post Next Post