प्रयागराज. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2005 के एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध बलात्कार नहीं है, खासकर तब जब यह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विवाह किया गया हो. कोर्ट ने आईपीसी की धाराओं 363, 366, 376 के तहत एक व्यक्ति की सजा रद्द कर दी. यह फैसला उस समय के कानून और परिस्थितियों पर आधारित था, जिसे कोर्ट ने पूरी तरह से बदल दिया है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2005 के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना अपराध नहीं है. यह फैसला 2005 के एक मामले में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि को पलटते हुए सुनाया गया है, जिसमें एक व्यक्ति ने कथित तौर पर एक नाबालिग का अपहरण कर उसके साथ बलात्कार किया था.
हाईकोर्ट ने फैसला पलटते हुए कहा कि उस व्यक्ति ने नाबालिग लड़की से शादी की थी और जब वह 16 साल की थी, तब उसने यह कृत्य किया था. यह कृत्य मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत अपराध नहीं है और यौन संबंध अपराध के समय लागू कानून के तहत दंडनीय नहीं था.
कोर्ट ने ये कहा
जस्टिस अनिल कुमार ने निचली अदालत के 2007 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363, 366 और 376 के तहत सात साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी. अदालत ने कहा, परिस्थितियों में यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अभियोजन पक्ष ऐसा कोई सबूत पेश करने में विफल रहा है, जिससे यह पता चले कि अपीलकर्ता ने पीडि़ता को बहकाया था या ले गया था.
लड़की ने भी स्वीकार की सहमति की बात
पीडि़ता के पिता ने आरोप लगाया कि उसे बहला-फुसलाकर ले जाया गया था, जबकि लड़की ने गवाही के दौरान स्वीकार किया कि वह अपीलकर्ता के साथ जाने के लिए स्वेच्छा से घर से निकली थी. उसने दावा किया कि वह उस व्यक्ति के साथ गई और उससे शादी कर ली, जिसके बाद वे एक महीने तक भोपाल में एक साथ रहे थे.