17 जानों की कीमत सिर्फ तीन सस्पेंशन ऑर्डर...!


बेबाक:खबर अभी तक

जानलेवा कफ सिरप ने एक के बाद एक 17 मासूमों की बलि ले लीं  और सरकार ने जारी किए सिर्फ तीन सस्पेंशन ऑर्डर। सस्पेंड भी किन्हें किया गया,जिनका इन कफ सिरप के लाइसेंस या बिक्री की अनुमति से सीधा कोई वास्ता नहीं था। सोचने वाली बात है कि ड्रग इंस्पेक्टर का जानलेवा कफ सिरप को बिकने देने या रोक लगाने से सीधा क्या वास्ता हो सकता है,लेकिन किसी न किसी पर गाज गिरानी था तो सॉफ्ट टारगेट चुने गये। आईएएस मौर्या पर भी कार्रवाई की गयी,लेकिन उनकी सिर्फ कुर्सी बदल गयी है। पता नहीं किस लिहाज से इसे सख्त कार्रवाई कहा जाता है,लेकिन सरकारी तंत्र यही कह रहा है। सरकार के मंत्री और  विभागों के मुखिया अफसरों पर किसी तरह की आंच आती दिखाई नहीं दे रही है। हालाकि, इन अहम पदों पर बैठने वाले हमेशा बेदाग बरी होते रहे हैं। परेशानी उस आम आदमी की है,जो अपने बच्चे की सेहत बिगड़ने पर पास के ही मेडिकल स्टोर से दवाईयां ले आता था। अब क्या कफ सिरप लेते वक्त उसके हाथ नहीं कांपेंगे। हमारे वोट और खून-पसीने की कमाई से ऐश करने वाले हमारे प्रति कितने बेपरवाह हैं,इसका ये पहला या अंतिम उदाहरण नहीं है। मरने वालों में किसी मंत्री या अफसर का बेटा होता तो शायद इसे बड़ा हादसा माना जाता,लेकिन मरने वाले ऐरे-गैरे थे इसलिए दो-तीन निलंबन आदेश पर्याप्त हैं और जांच समिति भी बना दी गयी है। कफ सिरप की सप्लाई करने वाली कंपनी को अनुमति कैसे दी गयी। सिरफ के कंटेंट को लेकर क्या गाइडलाइन है और उसका पालन क्यों नहीं किया गया,क्या इसकी निगरानी कोई ड्रग इंस्पेक्टर करता है या ड्रग कंट्रोलर, नहीं, इसके लिए पूरी प्रक्रिया बनी हुई और आखिर में सरकार की सबसे बड़ी कुर्सियों की रजामंदी के बाद कोई उत्पाद बाजार में आता है। ऐसा नहीं है कि हादसे नहीं होते,लेकिन जो हादसे होने दिये जाते हैं,वो बेहद पीड़ादायक होते हैं। जिन्हें हादसों को रोकने की जिम्मेदारी दी जाती है, जब वो हादसों की वजह बन जाते हैं, तब आम आदमी के दिल पर क्या गुजरती है, ये शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। दौलत की हवस में अंधे हो चुके क्रूर तंत्र ने जिन घरों के चिरागों को बुझा दिया है,वहां अब शायद कभी रौशनी नहीं हो सकेगी। लेकिन, बड़ा सवाल ये है कि क्या इस गलती से कोई सबक लेगा या फिर वही होगा, जो होता आया है...?

 

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