नई दिल्ली. रेलवे बोर्ड ने सभी जोनल रेलवे अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि वे भ्रष्टाचार के मामलों में स्वतंत्र रूप से जांच की मंजूरी न दें। बोर्ड ने कहा कि ऐसा करना कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के निर्देशों का उल्लंघन है। बोर्ड ने स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत जांच की मंजूरी केवल रेलवे बोर्ड की सतर्कता शाखा यानि विजिलेंस द्वारा दी जानी चाहिए।
रेलवे बोर्ड ने हाल जारी परिपत्र में कहा कि कुछ जोनल रेलवे और उत्पादन इकाइयां भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 (2018 में संशोधित) की धारा 17ए के तहत स्वयं ही मंजूरी दे रही थीं। बोर्ड ने चेतावनी दी कि यह नियमों के खिलाफ है और इससे जांच प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठ सकता है।
दिया इन निर्देशों का हवाला
बोर्ड ने अपने आदेश में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के पुराने आदेश को भी दोहराया। इसके मुताबिक, किसी भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ उसके आधिकारिक कामकाज से जुड़े फैसलों या सिफारिशों पर जांच तभी शुरू हो सकती है जब सरकार से पहले अनुमति ली जाए। इसका उद्देश्य मनमानी कार्रवाई को रोकना और नियमों के तहत जांच प्रक्रिया को सुनिश्चित करना है।
मुख्य सतर्कता अधिकारियों पर सवाल
सूत्रों के अनुसार, यह आदेश तब आया जब रेलवे बोर्ड के संज्ञान में आया कि कुछ जोनल मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) बिना बोर्ड की अनुमति के भ्रष्टाचार के मामलों में जांच शुरू कर रहे थे। शिकायतों पर मिली जानकारी के बाद बोर्ड ने स्पष्ट कर दिया कि ऐसी कोई भी कार्रवाई केवल बोर्ड विजिलेंस की मंजूरी से ही हो सकती है।
2018 संशोधन और प्रक्रियाएं
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि डीओपीटी ने तीन सितंबर 2021 को सभी विभागों को पत्र लिखकर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 17ए के मामलों से जुड़ी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) भी बताई थी। इसमें साफ कहा गया था कि चाहे अधिकारी गजटेड हो या नॉन-गजटेड, जांच की मंजूरी जोनल स्तर पर नहीं, बल्कि केंद्रीय स्तर पर ही दी जानी चाहिए। रेलवे बोर्ड का यह कदम भ्रष्टाचार के मामलों की जांच को पारदर्शी और नियमबद्ध बनाने की दिशा में है। बोर्ड ने चेतावनी दी है कि यदि कोई जोनल अधिकारी स्वतंत्र रूप से ऐसी मंजूरी देता है, तो यह डीओपीटी के आदेशों का उल्लंघन होगा और उस पर सख्त कार्रवाई हो सकती है।
