भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष समिति की और से दायर याचिका पर बुधवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा एवं जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने सुनवाई करते हुए निर्देश दिए हैं कि केस से जुड़े सभी प्रकरणों दाखिल मंथली प्रोग्रेस रिपोर्ट रजिस्ट्रार ऑफ जनरल को दी जाए। जिसके बाद प्रकरणों की प्रोग्रेस रिपोर्ट देखी जाएगी। भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति की ओर से जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बेंच ने भोपाल ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि गैस त्रासदी से जुड़े लंबित मामलों का निराकरण जल्द से जल्द किया जाए। याचिकाकर्ता समिति जो विभिन्न स्वैच्छिक संगठनों का संघ है और गैस त्रासदी पीडि़तों की ओर से काम करती है। संघ ने बताया कि क्रिमिनल 91/1992 मामला पिछले 33 सालों से लंबित है। वर्ष 2010 से जिला जज की अदालत में आपराधिक पुनरीक्षण की अपील भी लंबित है। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने आपत्ति जताई कि याचिकाकर्ता न तो गवाह है और न ही पक्षकारए इसलिए याचिका सुनने योग्य नहीं है। हालांकि हाईकोर्ट ने इस पर आदेश दिया कि श्चूंकि ये कार्रवाई लंबे समय से लंबित हैए इसलिए इस याचिका का निराकरण करने के निर्देश देते हैं। हाईकोर्ट ने संबंधित न्यायालय और लंबित आपराधिक अपीलों का यथाशीघ्र निस्तारीकरण प्राथमिकता से करें। हाईकोर्ट ने संबंधित अदालतें मासिक रिपोर्ट रजिस्ट्रार जनरल को भेजेंगी और रजिस्ट्रार जनरल इन्हें मुख्य न्यायाधीश को प्रशासनिक पक्ष पर प्रस्तुत करेंगे। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने बताया कि मामला 5 अक्टूबर तक स्थगित कर दिया गया है। सरकारी पक्ष ने कहा कि सीबीआई जांच एजेंसी है। अब भी एक आपराधिक अपील तथा एक विविध आपराधिक मामला लंबित है। यह मामला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 के तहत आरोपियों को फरार घोषित करने के लिए दायर किया गया था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि एक आरोपी अक्टूबर 2023 से अदालत में उपस्थित हो रहा हैए फिर भी अब तक न तो कोई आदेश पारित हुआ हैए न ही ट्रायल शुरू हुआ है। इस पर अदालत ने मौखिक रूप से पूछा श्धारा 82 में आरोपी उपस्थित होता है तो उसका क्या अर्थ है। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि धारा 82 में उपस्थिति से ट्रायल स्वत: शुरू नहीं होता, इसके लिए अदालत को विशेष आदेश देना पड़ता है। उन्होंने कहा कि आरोपी दो साल से उपस्थित है, फिर भी चार्जशीट दाखिल नहीं हुई। याचिकाकर्ता ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने खुले अदालत में आदेश पारित करने में असमर्थता व्यक्त की है। इस पर हाईकोर्ट ने आश्वस्त किया है कि अब हर महीने रिपोर्ट भेजें।