
अधिवक्ता वरुण ठाकुर ने बताया कि याचिका एमपीपीएससी के चयनित अभ्यर्थियों ने लगाई है। जिनको नियुक्ति नहीं दी जा रही है। मामले में मध्यप्रदेश सरकार ने 29 सितंबर 2022 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था, इसे कोर्ट में चैलेंज किया गया है। सरकार ने कोर्ट में कहा था कि हम भी रिजर्वेशन देना चाहते हैं। ऐसे में ऑर्डिनेंस पर जो स्टे हैए उसे वेकेंट किया जाए। इस पर कोर्ट ने कहा कि सबसे बड़ी बात ये है कि मप्र सरकार के जो जनप्रतिनिधि कहते हैं कि हम ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनके वकील सुनवाई में तब पहुंचते हैं, जब ऑर्डर डिक्टेट हो जाता है। फिर ये नेता कहते हैं कि ऑर्डिनेंस पर स्टे वेकेंट नहीं होने से प्रशासनिक परेशानियां आ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट में आज सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के चयनित अभ्यर्थियों की तरफ से कोर्ट के सामने पक्ष रखा। कोर्ट ने इस मामले को अति महत्वपूर्ण मानते हुए टॉप ऑफ द बोर्ड में लिस्टेड किया है। 23 सितंबर को इसे पहले नंबर पर सुनवाई के लिए रखा है। ये 13 प्रतिशत होल्ड वाले मामले में सभी याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई होगी।
हाईकोर्ट ने आरक्षण सीमा 14 प्रतिशत तक सीमित की थी-
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 4 मई 2022 के अंतरिम आदेश में ओबीसी आरक्षण की सीमा 14: तक सीमित कर दी थी। इसके बाद से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है। 5 अगस्त को हुई सुनवाई में ओबीसी महासभा की ओर से कहा गया था कि परीक्षा के बाद भर्ती प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन नियुक्ति नहीं दी जा रही है। छत्तीसगढ़ जैसी राहत एमपी में दी जाए। दूसरी ओर जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चांडुरकर की खंडपीठ के सामने अनारक्षित वर्ग द्वारा 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिए जाने पर बात रखी गई थी।
22 जुलाई को सरकार ने मांगी थी राहत-
इस मामले में 22 जुलाई को हुई सुनवाई में मध्यप्रदेश सरकार ने राहत की मांग की थी। सरकार की ओर से कहा गया था कि जैसे छत्तीसगढ़ में 58 प्रतिशत आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी है। वैसे ही एमपी को भी राहत दी जाएए ताकि भर्ती प्रक्रिया पूरी हो सके। ओबीसी पक्षकार ने भी एक्ट को लागू करने की मांग की थी जबकि अनारक्षित पक्ष ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि एमपी और छत्तीसगढ़ के मामलों में अंतर है। क्योंकि मप्र में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया गया जबकि छत्तीसगढ़ में एसटी आबादी अधिक होने के कारण वहां का आरक्षण पहले जैसा है।
जुलाई में ही यह मामला भी आया-
इसके पहले जुलाई में हुई एक अन्य सुनवाई के दौरान मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के चयनित अभ्यर्थियों की ओर से मांग की गई थी कि राज्य में ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून होने के बावजूद 13 प्रतिशत पदों को होल्ड पर रखा गया है। इसे हटाया जाए। इस पर सरकार के वकीलों ने बताया था कि मध्यप्रदेश सरकार भी चाहती है कि ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिले। हम इसको अनहोल्ड करने के समर्थन में हैं। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने आपको रोका कब है। राज्य सरकार के 22 सितंबर 2022 को जारी नोटिफिकेशन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये नोटिफिकेशन कानून के खिलाफ क्यों जारी किया गया था। इस सुनवाई को लेकर एडण् वरुण ठाकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने माना कि ये नोटिफिकेशन गलत तरीके से जारी हुआ है। हम इसको अनहोल्ड करने के समर्थन में हैं।
सरकार के आदेश पर स्टे हटाने की मांग-
मध्यप्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दी गई जानकारी के मुताबिक प्रदेश में 2019 में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का बिल पारित हुआ था। उसके बाद जब 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के क्रियान्वयन आदेश जारी हुए तो 4 मई 2022 में अभ्यर्थी शिवम गौतम ने मप्र हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। हाईकोर्ट ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण के क्रियान्वयन आदेश पर स्टे दे दिया। इसके साथ ही राज्य सरकार के संशोधित कानून और नियम पर रोक लगा दी गई थी। इन संशोधनों से आरक्षण की कुल सीमा 73 प्रतिशत तक पहुंच रही थी। एसटी को 20 प्रतिशत, एससी को 16 प्रतिशत, ओबीसी को 27 प्रतिशत व आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य (ईडब्ल्यूएस) को 10 प्रतिशत आरक्षण शामिल था। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो गया। सरकार ने इसी आदेश को चुनौती देते हुए ट्रांसफर केस 7/2025 के तहत स्टे वैकेंट की सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है। अब अगर सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाता है तो मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत हो सकता है। अभी तक 70 से ज्यादा याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो चुकी हैं।
सरकार आबादी के पुख्ता आंकड़े नहीं दे सकी
मध्यप्रदेश सरकार का दावा है कि राज्य की आबादी का 48 प्रतिशत ओबीसी समुदाय है। हालांकि इस आंकड़े को प्रमाणित करने के लिए सरकार के पास अभी तक ठोस डेटा नहीं है। 2019 और 2022 में इसी आधार पर हाई कोर्ट ने आरक्षण पर रोक लगाई थी।
हर भर्ती में 13 फीसदी पद होल्ड, ऐसी 35 भर्तियां
विवाद के कारण सरकार हर भर्ती परीक्षा में 13 प्रतिशत पद होल्ड कर रही है। सिर्फ 14 प्रतिशत पर रिजल्ट जारी कर रहे हैं। 2019 से अब तक 35 से अधिक भर्तियां रुकी हैं। 8 लाख अभ्यर्थी प्रभावित हो रहे हैं। करीब 3.2 लाख चयनित अभ्यर्थियों के रिजल्ट होल्ड हैं। जिन्हें नियुक्ति का इंतजार है। राज्य सरकार की रिपोर्ट के अनुसार 2023 विधानसभा चुनावों के बाद से अब तक 29 हजार पदों पर नियुक्ति हुई है, जबकि 1.04 लाख पद अब भी खाली हैं।