केंद्र ने कहा, राज्यों को बातचीत से विवाद निपटाने चाहिए,दशकों से यही प्रथा, कोर्ट हर समस्या का समाधान नहीं, राज्यपाल बिल पेंडिंग केस

 

         नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यदि राज्यपाल विधेयकों पर कोई फैसला नहीं लेते हैं तो राज्यों को कोर्ट की बजाय बातचीत से हल निकालना चाहिए। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सभी समस्याओं का समाधान अदालतें नहीं हो सकतीं। लोकतंत्र में संवाद को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हमारे यहां दशकों से यही प्रथा रही है।

                                            सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने आज लगातार तीसरे दिन भारत के राज्यपाल और राष्ट्रपति की ओर से बिल को मंजूरी, रोक या रिजर्वेशन मामले की सुनवाई की। बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा व एएस चंदुरकर शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्वाचित सरकारें राज्यपालों की मर्जी पर नहीं चल सकतीं। अगर कोई बिल राज्य की विधानसभा से पास होकर दूसरी बार राज्यपाल के पास आता है, तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते। संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं। बिल को मंजूरी देना, मंजूरी रोकना, राष्ट्रपति के पास भेजना या विधानसभा को पुनर्विचार के लिए लौटाना। लेकिन अगर विधानसभा दोबारा वही बिल पास करके भेजती है, तो राज्यपाल को उसे मंजूरी देनी होगी। सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने कहा कि अगर राज्यपाल बिना पुनर्विचार के ही मंजूरी रोकते हैं, तो इससे चुनी हुई सरकारें राज्यपाल की मर्जी पर निर्भर हो जाएंगी। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को यह अधिकार नहीं है कि वे अनिश्चितकाल तक मंजूरी रोककर रखें। 

सरकार बोली, क्या कोर्ट संविधान दोबारा लिख सकती है-

इस मामले पर पहले दिन की सुनवाई में केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2025 वाले फैसले पर कहा कि क्या अदालत संविधान को फिर से लिख सकती है। कोर्ट ने गवर्नर और राष्ट्रपति को आम प्रशासनिक अधिकारी की तरह देखा जबकि वे संवैधानिक पद हैं। 

राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे थे-

15 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों को लेकर 14 सवाल पूछे थे। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से यह राय मांगी थी कि क्या कोर्ट राष्ट्रपति को राज्य विधानसभा से पास बिलों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय कर सकता है।

तमिलनाडु से शुरू हुआ था विवाद-

यह मामला तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। जहां गवर्नर से राज्य सरकार के बिल रोककर रखे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। इसी फैसले में कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सामने आया था। इसके बाद राष्ट्रपति ने मामले में सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी और 14 सवाल पूछे थे।


Post a Comment

Previous Post Next Post