16 साल की मुस्लिम लड़की की शादी वैध, सुप्रीम कोर्ट ने संरक्षण देने के फैसले को रखा बरकरार

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने 16 साल की एक मुस्लिम लड़की की शादी को सही ठहराते हुए उसे और उसके पति को सुरक्षा देने वाले हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने इस शादी पर सवाल उठाने वाले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि जब हाईकोर्ट नाबालिग लड़की और उसके बच्चे को संरक्षण दे रहा है तो आयोग को इससे क्या आपत्ति है?

यह मामला एक 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की और उसके 30 वर्षीय पति (जावेद) से जुड़ा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, 15 वर्ष की आयु पूरी कर चुकी लड़की अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर सकती है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने न केवल उनकी शादी को वैध माना, बल्कि परिवार के सदस्यों से मिल रही धमकियों के मद्देनजर जोड़े और उनके बच्चे को सुरक्षा भी प्रदान की थी।

इस फैसले को एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। आयोग ने लड़की की कम उम्र का हवाला देते हुए इसे बाल विवाह और पॉक्सो (पॉक्सो) अधिनियम का उल्लंघन बताया था।

मंगलवार को जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए एनसीपीसीआर के रुख पर नाराजगी जताई। बेंच ने कहा, हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर एनसीपीसीआर को नाबालिगों के संरक्षण में क्या गलत दिख रहा है? आयोग की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने दलील दी कि क्या 15 साल की लड़की पर्सनल लॉ के आधार पर शादी के लिए कानूनी और मानसिक रूप से सक्षम हो सकती है?

इस पर कोर्ट ने असहमति जताते हुए कहा कि यहां कानून का कोई सवाल ही नहीं उठता। जस्टिस नागरत्ना ने फटकार लगाते हुए कहा, लड़की अपने पति के साथ रह रही है, उसका एक बच्चा भी है। आपको क्या समस्या है? अगर हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए आदेश दिया है तो आप इसे चुनौती कैसे दे रहे हैं?

यह मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ और बाल विवाह निषेध अधिनियम के बीच के विवाद को उजागर करता है। बाल विवाह निषेध अधिनियम सभी धर्मों के नागरिकों पर लागू होता है और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष तय करता है। वहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ में यौवन प्राप्त करने पर लड़कियों को विवाह के योग्य मान लिया जाता है, जिसके लिए आम तौर पर 15 वर्ष की आयु को आधार माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने इस बहस को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है।

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