फर्जी दस्तावेज बनाकर सीमेंट कम्पनी को पहुँचाया फायदा,जांच में साबित हुए आरोप
जबलपुर। मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड ने भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितता के एक गंभीर मामले में बड़ा फैसला किया है। कंपनी ने तत्काल प्रभाव से तत्कालीन कार्यपालन अभियंता (चालू प्रभार) मुकेश सिंह को सेवा से बर्खास्त कर दिया है। यह कार्रवाई विभागीय जांच में उनके विरुद्ध लगे दोनों आरोपों के पूर्णतः सिद्ध होने पर की गई है। मुकेश सिंह पर मेसर्स अल्ट्राटेक सीमेंट को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए कूटरचित दस्तावेज़ तैयार करने और परिणामस्वरूप मध्य प्रदेश शासन को 8.50 करोड़ रुपये की वित्तीय क्षति पहुंचाने का मुख्य आरोप था। जांच में यह भी स्पष्ट हुआ कि उन्होंने जांच प्रक्रिया में लगातार असहयोग किया और विलंब करने का पूरा प्रयास किया।
कैसे खुली अफसर की कलई
मुकेश सिंह 6 सितम्बर 2018 से 14 जनवरी 2021 तक संचालन एवं संधारण संभाग, शहडोल में पदस्थ थे। उन पर मुख्य रूप से दो आरोप थे। शहडोल में पदस्थापना के दौरान, उन्होंने मेसर्स अल्ट्राटेक सीमेंट (विचारपुर कोलमाइन्स) के 33 केवी उच्चदाब कनेक्शन के संबंध में लाइन के हैंडओवर की वास्तविक तिथि 5 मार्च 2019 को कूटरचित कर 1 मार्च 2019 अंकित कर दी। यह परिवर्तन उपभोक्ता को विद्युत शुल्क की छूट का पात्र बनाने के उद्देश्य से किया गया था, क्योंकि वास्तविक तिथि छूट अवधि के बाद की थी। दूसरा आरोप ये है कि उन्होंने कार्य पूर्णता प्रतिवेदन के संबंध में कूटरचित दस्तावेज को प्रमाणित करने के लिए अधीक्षण अभियंता को भ्रामक जानकारी प्रस्तुत की, जिससे कार्य पूर्णता की तिथियों को उपभोक्ता को छूट का पात्र बनाने के लिए बदला गया। कूटरचित दस्तावेज़ के आधार पर, अल्ट्राटेक सीमेंट द्वारा दायर रिट याचिका क्रमांक 4333/2022 में माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर ने 6 मई 2024 को उपभोक्ता के पक्ष में 8.50 करोड़ रुपये का भुगतान 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित किए जाने का आदेश पारित किया, जिससे शासन को वित्तीय क्षति हुई।
-ऐसे आगे बढ़ा जांच का सिलसिला
मुकेश सिंह को 16 दिसम्बर 2024 को निलंबित कर दिया गया था। माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में, उन पर 23 अप्रैल 2025 को आरोप पत्र जारी किया गया। निर्धारित समय में बचाव कथन प्रस्तुत न करने पर, महाप्रबंधक (वाणिज्य) पीके अग्रवाल को 9 मई 2025 को जांचकर्ता अधिकारी नियुक्त कर विभागीय जांच शुरू की गई। जांचकर्ता अधिकारी ने 11 दिसम्बर 2025 को जांच निष्कर्ष प्रस्तुत किया। जांच में यह स्पष्ट पाया गया कि मुकेश सिंह द्वारा ही दो भिन्न-भिन्न कार्यपूर्णता एवं हैंडओवर प्रतिवेदन जारी किए गए थे, जिनमें 01 मार्च 2019 का पत्रक स्पष्ट रूप से कूटरचित था और दोनों पर उनके हस्ताक्षर थे। जांच में यह भी पाया गया कि उन्होंने जानबूझकर जांच में विलंब करने, चिकित्सा-अवकाश का दुरूपयोग करने और अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर लगातार आक्षेप लगाने जैसे असहयोगात्मक आचरण अपनाए। अंतिम कार्रवाई से पहले जांचकर्ता अधिकारी के निष्कर्षों और उपलब्ध दस्तावेजों के गहन अध्ययन के बाद, प्रबंध संचालक अनय द्विवेदी ने मुकेश सिंह का अभ्यावेदन अमान्य कर दिया। चूंकि उन पर लगे दोनों आरोप पूर्णतः सिद्ध पाए गए, और शासन को 8.50 करोड़ रुपये की वित्तीय क्षति हुई, उन्हें म.प्र. सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1966 के नियम 10 के तहत तत्काल प्रभाव से कंपनी सेवाओं से बर्खास्त करने का आदेश जारी कर दिया।
-जांच में रोड़े अटकाने की कोशिश
विभागीय जांच के दौरान, मुकेश सिंह ने असहयोगात्मक आचरण अपनाया। उन्होंने जांच में विलंब करने के लिए लगातार प्रयास किए। जब-जब जांच में प्रगति हुई, उन्होंने चिकित्सा-अवकाश के आवेदन (पत्नी और भाई के ई-मेल से) प्रेषित किए। उन्होंने कंपनी के पत्राचार लेने से अस्वीकार कर दिया। उन्होंने अनुशासनिक प्राधिकारी और जांचकर्ता अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर भी लगातार आक्षेप लगाए, जिससे स्पष्ट है कि उन्होंने जांच पूरी न हो, ऐसा प्रयास किया।
