जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि एडहॉक (तदर्थ) आधार पर नियुक्त व्यक्ति अपनी पूरी सेवा अवधि (एडहॉक काल सहित) के लिए पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभों का हकदार है। न्यायमूर्ति दीपक खोट की एकल पीठ ने सेवानिवृत्त प्रोफेसर अरुण प्रकाश बुखारिया की याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। प्रोफेसर बुखारिया ने 1977 में भौतिकी के लेक्चरर के रूप में एडहॉक पर नियुक्ति ली थी और 1987 में उनकी सेवा नियमित हुई। वे 2009 में सेवानिवृत्त हुए थे।प्रोफेसर बुखारिया ने याचिका दायर की थी क्योंकि सरकार ने उनकी एडहॉक सेवा को पेंशन योग्य नहीं माना था। उनके वकील ने तर्क दिया कि एडहॉक अवधि में दिए गए दो-तीन दिन के 'ब्रेक' केवल 'काल्पनिक' और 'कृत्रिम' थे, जो मध्य प्रदेश सिविल सेवा पेंशन नियमों के तहत सेवा में व्यवधान (ब्रेक इन सर्विस) नहीं माने जा सकते।
-कोर्ट ने शर्त क्या रखीं
कोर्ट ने राज्य सरकार के उस तर्क को खारिज कर दिया कि यदि एडहॉक सेवा में दो या अधिक ब्रेक थे, तो केवल अंतिम हिस्सा ही पेंशन गणना के लिए माना जाएगा। न्यायमूर्ति खोट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसे ब्रेक 'कृत्रिम और काल्पनिक' थे तथा पेंशन से वंचित करने के लिए इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता की सेवा 1977 से 2009 तक निरंतर मानी जाएगी। इसी आधार पर उनकी पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों की गणना की जाएगी। इस फ़ैसले को दूरगामी प्रभाव वाला माना जा रहा है, जिससे मध्य प्रदेश के हजारों एडहॉक शिक्षकों और कर्मचारियों को राहत मिलेगी।
