सीएम का आया बुलावा: 27 साल की मांग लेकर भोपाल रवाना हुआ 50 आंदोलनकारियों का जत्था
जबलपुर। पिछले 27 सालों से चली आ रही सिहोरा को जिला बनाने की मांग अब अपने निर्णायक दौर में पहुंच गई है। कई बार के उतार-चढ़ाव और मुख्यमंत्री से मुलाकात टलने के बाद, आखिरकार मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने आंदोलनकारियों को 26 दिसंबर को दोपहर 12 बजे भोपाल बुलाया है। इस महत्वपूर्ण वार्ता के लिए क्षेत्र के विधायक संतोष बरकड़े के नेतृत्व में 50 से अधिक आंदोलनकारियों और प्रतिनिधियों का जत्था भोपाल के लिए रवाना हो रहा है।
सत्याग्रह के संकल्प का असर
सिहोरा बस स्टैंड पर 3 दिसंबर से 'लक्ष्य जिला सिहोरा आंदोलन समिति' द्वारा आमरण सत्याग्रह शुरू किया गया था। इस आंदोलन की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आरएसएस के पूर्व प्रचारक प्रमोद साहू पिछले 19 दिनों से अन्न का त्याग किए हुए हैं। 9 दिसंबर को उन्होंने जल का भी त्याग कर दिया था, जिसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा था। हालांकि, 13 दिसंबर को डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा के आश्वासन पर उन्होंने जल तो ग्रहण कर लिया, लेकिन उनका संकल्प अडिग है कि जब तक सिहोरा जिला नहीं बन जाता, वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। इस सत्याग्रह ने पूरे क्षेत्र में जन-आक्रोश और भावनात्मक लहर पैदा कर दी है।
विधायक व नेताओं ने संभाली कमान
आंदोलन के दौरान प्रशासन और जन-प्रतिनिधियों की ओर से समय निर्धारण को लेकर काफी अनिश्चितता बनी रही। पहले 16 दिसंबर और फिर 23 दिसंबर को मुख्यमंत्री से मुलाकात का समय तय हुआ था, लेकिन किन्हीं कारणों से यह संभव नहीं हो सका। मुलाकात टलने और विधायक के फोन स्विच ऑफ होने से आंदोलनकारी हताश होकर उग्र प्रदर्शन की तैयारी में थे।अब विधायक संतोष बरकड़े ने स्वयं इस प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करने की जिम्मेदारी ली है। इस दल में समिति के सदस्यों के साथ पूर्व विधायक दिलीप दुबे, पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष प्रकाश पांडे सहित विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के पदाधिकारी शामिल हैं।
तथ्यों के साथ पेश होगा सिहोरा का दावा
प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री के समक्ष सिहोरा की भौगोलिक स्थिति, प्रशासनिक आवश्यकता और बढ़ती जनसंख्या के आंकड़े पेश करेगा। आंदोलनकारियों का स्पष्ट कहना है कि सिहोरा जिला बनने के सभी मानकों को पूरा करता है और अब वे आश्वासन नहीं, बल्कि ठोस आदेश चाहते हैं। मुख्यमंत्री से वार्ता तय होने के कारण फिलहाल समिति ने पुतला दहन और चक्काजाम जैसे उग्र कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया है। पूरे सिहोरा क्षेत्र की निगाहें अब 26 दिसंबर की बैठक पर टिकी हैं, जिसे इस 27 साल लंबे संघर्ष का आखिरी पड़ाव माना जा रहा है।
