जिले की 11 शालाओं में एक भी शिक्षक नहीं, 121 में सिर्फ एक
जबलपुर। जिले में सरकारी स्कूलों की हालत इतनी खराब हो गई है कि शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय को भेजी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ है कि जिले के 11 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है, जबकि 121 स्कूल ऐसे हैं जो केवल एक शिक्षक (सिंगल टीचर) के भरोसे चल रहे हैं। प्रशासन इन स्कूलों में अतिथि शिक्षकों (गेस्ट टीचर्स) के माध्यम से पढ़ाई करवाने का दावा कर रहा है, लेकिन स्थायी शिक्षकों के अभाव में अभिभावकों का सरकारी स्कूलों से मोहभंग होता जा रहा है।
अव्यवस्था: जहां बच्चे ज्यादा वहां शिक्षकों का टोटा
विभाग की रिपोर्ट में शिक्षकों की तैनाती में भारी अव्यवस्था सामने आई है। कई स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों की संख्या कम है लेकिन वहां आवश्यकता से अधिक शिक्षक पदस्थ हैं, जबकि जिन स्कूलों में बच्चों की संख्या अधिक है, वहां शिक्षकों की भारी कमी है। इस कुप्रबंधन के कारण अभिभावक अब अपने बच्चों को केवल कुछ चुनिंदा सरकारी स्कूलों में ही भेजना चाहते हैं। बाकी स्कूलों में लगातार गिरते शैक्षणिक स्तर के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की अनदेखी को भी जिम्मेदार माना जा रहा है।
निकटतम संकुल से समायोजन का तर्क
शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए 'समायोजन' को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि जिन स्कूलों में कमी है, वहां उसी संकुल या आसपास के संकुल से शिक्षकों को तैनात किया जाना चाहिए, न कि दूर-दराज से। वहीं, इस मामले में डीपीसी ऑफिस का कहना है कि शिक्षकों की तैनाती बच्चों की संख्या (छात्र संख्या) के आधार पर तय होती है। कम बच्चों वाले स्कूलों में गेस्ट टीचर्स रखे जाते हैं या उन्हें दूसरे स्कूलों में मर्ज (विलय) किया जाता है, इसी कारण 121 स्कूलों में सिंगल टीचर की स्थिति बनी हुई है।
अधिकारियों के दावे:कितने सच,कितने झूठ
जब जिलों के 11 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है और 121 स्कूल केवल एक अध्यापक के भरोसे चल रहे हैं, तब अधिकारियों के दावे हास्यास्पद लगते हैं। वे कहते हैं कि शिक्षकों की तैनाती छात्रों की संख्या के आधार पर हो रही है, और कम संख्या वाले स्कूलों में गेस्ट टीचर्स या मर्जर (विलय) जैसे उपाय किए जा रहे हैं। यह कैसा तर्क है, जो बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित कर रहा है? शिक्षा विभाग की रिपोर्ट स्वयं ही इस प्रशासनिक विफलता की गवाही दे रही है। शिक्षकों की कमी को दूसरे संकुल से 'समायोजित' करने के बजाय, उन्हें उन्हीं स्कूलों में लगाया जा रहा है, जहां वे पहले से ही अधिक संख्या में हैं। बच्चों के भविष्य को लेकर इस तरह की उदासीनता और खोखले दावे, सचमुच यही सवाल उठाते हैं कि हम किस मुंह से कहें कि हम शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति कर रहे हैं?
