जबलपुर।मध्यप्रदेश लंबे समय से खुद को बिजली उत्पादन के मामले में सरप्लस स्टेट बताता रहा है, लेकिन वास्तविक स्थिति इसके उलट दिखाई दे रही है। विधानसभा में पेश आँकड़ों ने सरकार के दावों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जब राज्य खुद के उत्पादन को पर्याप्त बताता है, तो फिर करोड़ों यूनिट बिजली बाहरी स्रोतों से खरीदने की नौबत क्यों आई? यही विरोधाभास प्रदेश की ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
सरकार के दावे बनाम खरीद की सच्चाई
विधानसभा में उठे सवालों के जवाब में ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर की ओर से मंत्री तुलसीराम सिलावटने स्वीकार किया कि पिछले वित्त वर्ष में 74 करोड़ यूनिट और इस वर्ष अब तक 91 करोड़ यूनिट बिजली खरीदनी पड़ी है। जबकि सरकार का दावा है कि प्रदेश में उपलब्ध बिजली उत्पादन मांग के अनुरूप है। सवाल यह भी है कि जब उत्पादन क्षमता पर्याप्त है तो अतिरिक्त खरीद किस मजबूरी में की जा रही है? मंत्री ने इसे "लोड मैनेजमेंट और आपूर्ति सुनिश्चित करने" की आवश्यकता बताया, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि यह खराब प्लानिंग और सिस्टम की विफलता का नतीजा है।
स्मार्ट मीटर और उपभोक्ताओं की बढ़ती चिंताएँ
स्मार्ट मीटर लगाए जाने के बाद उपभोक्ताओं की शिकायतें बढ़ी हैं। कई परिवारों का बिल अचानक कई गुना तक बढ़ा तो लोग इसे तकनीकी गड़बड़ी बता रहे हैं। डॉ. विक्रांत भूरिया ने विधानसभा में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि स्मार्ट मीटर प्रणाली पारदर्शी नहीं दिख रही। वहीं सरकार का कहना है कि स्मार्ट मीटर से चोरी रोकने और वास्तविक खपत का आकलन आसान हुआ है। फिर भी पारदर्शिता और विश्वसनीयता को लेकर बड़ी संख्या में उपभोक्ता असंतुष्ट हैं।
