लगातार हार के बावजूद संगठन नहीं दिखा पा रहा मजबूती, जबलपुर शहर व ग्रामीण में कई धड़ों में बंटी पार्टी
जबलपुर। शहर और जिले में कांग्रेस की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। हर चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बदतर हो रहा है, लेकिन इसके बाद भी संगठनात्मक सुधार और आत्ममंथन केवल कागज़ों में सिमटकर रह गया है। गुटबाजी के कारण पार्टी की छवि कमजोर पड़ रही है और नेता आपसी तालमेल बैठाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। हाल ही में चलाए गए संगठन सुदृढ़ीकरण अभियान में भी सक्रियता केवल औपचारिकताओं तक सीमित रह गई।
मजबूत विपक्ष के तौर पर बेहद पीछे
जबलपुर के सभी विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस की पकड़ बेहद कमजोर हो चुकी है। पार्टी यहां पिछले कई चुनावों से गंभीर धारदार विपक्ष की भूमिका भी निभाने में असफल रही है। स्थानीय स्तर पर संगठन नज़र नहीं आता, न ही सक्रिय पदाधिकारियों की टीम मैदान में दिखती है। गांव, बूथ स्तर या पार्टी ढांचे में कोई विशेष सक्रियता सामने नहीं आ रही। कांग्रेस न तो मुद्दों पर पकड़ बना पा रही और न ही संगठन विस्तार की दिशा में प्रभावी कदम उठा रही है। पार्टी में निजी छवि आधारित राजनीति हावी है। पूर्व विधायकों की सक्रियता सीमित है। जमीनी स्तर पर कांग्रेस की गतिविधियाँ लगभग ठप जैसी दिख रही हैं। पार्टी के मुख्य नेताओं के बीच सामंजस्य की कमी और लगातार अंदरूनी मतभेदों ने कांग्रेस की जमीनी ताकत को कमज़ोर किया है। नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ पार्टी संगठन से कहीं आगे दिखाई दे रही हैं।
लगातार पराजय, लेकिन सुधार की कोशिश नदारद
लगातार हार के बाद भी कांग्रेस में आत्ममंथन की गंभीरता दिखाई नहीं दे रही। बड़े नेताओं की बैठकों और बयानों तक ही सब सीमित है, जबकि जमीनी कार्यकर्ता असमंजस में हैं। संगठन, नेतृत्व और निर्णय क्षमता की कमी ने जनता में कांग्रेस का प्रभाव काफी घटा दिया है। अगर हालात नहीं सुधरे तो आने वाले चुनावों में पार्टी के लिए स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
कार्यकारिणी तक नहीं बन सकी
कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी और असहमति का हाल यह है कि शहर संगठन की कार्यकारिणी तक महीनों बीत जाने के बाद भी नहीं बन सकी है। पार्टी में नेतृत्व को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है, जबकि सक्रिय पदाधिकारियों की टीम तैयार करना प्राथमिक आवश्यकता मानी जा रही थी। स्थानीय नेताओं के बीच मनमुटाव और अलगाव इतना गहरा है कि किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही। इससे संगठनात्मक संरचना कमजोर हो रही है और जमीनी कार्यकर्ता दिशाहीन महसूस कर रहे हैं।
चुनावों में लगातार कमजोर प्रदर्शन के बाद संगठन सुदृढ़ करने की अपेक्षा की जा रही थी, लेकिन कार्यकारिणी न बनने से यह स्पष्ट है कि सुधार की प्रक्रिया ठहराव में है। यदि जल्द ही मजबूत नेतृत्व और समन्वय नहीं दिखा, तो पार्टी की सक्रियता और प्रभाव दोनों प्रभावित होते रहेंगे।
