मौत के साये से लौटी आसनी: 3 घंटे की जंग के बाद पेट से निकला 22 किलो का ट्यूमर, मिला नया जीवन


संस्कारधानी में चिकित्सा का चमत्कार,सुख सागर मेडिकल कॉलेज की टीम ने किया कमाल

​जबलपुर। जबलपुर के कुंडम क्षेत्र की रहने वाली 22 वर्षीय आसनी गोंड के लिए पिछला आधा साल किसी दुस्वप्न से कम नहीं था। महज 22 साल की उम्र, जहाँ जीवन में उत्साह और उमंग होनी चाहिए थी, वहाँ आसनी असहनीय दर्द और एक ऐसी बीमारी से जूझ रही थी जिसने उसका चलना-फिरना तक दूभर कर दिया था। उसके पेट में पल रहा इंट्रा-एब्डोमिनल पेल्विक ट्यूमर धीरे-धीरे इतना विशाल हो गया कि उसने आसनी के शरीर का आधा वजन घेर लिया।मार्मिक स्थिति यह थी कि आसनी का पेट किसी गर्भवती महिला से भी कहीं ज्यादा बढ़ चुका था। 22 किलो के इस वजनी ट्यूमर के कारण वह बिस्तर से उठ तक नहीं पाती थी। हर सांस के साथ उठने वाला दर्द उसे मौत के करीब महसूस कराता था। आर्थिक तंगी और बीमारी के खौफ के बीच 12 दिसंबर को परिजन उसे सुखसागर मेडिकल कॉलेज लेकर पहुँचे, जहाँ डॉक्टरों ने इस चुनौती को स्वीकार किया।

तीन घंटे का संघर्ष और 30 साल के करियर का दुर्लभ केस

​एसएस मेडिकल अस्पताल के सर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अर्जुन सक्सेना की टीम ने जब आसनी की जांच की, तो वे भी दंग रह गए। ट्यूमर इतना बड़ा था कि वह शरीर के अन्य अंगों पर भारी दबाव बना रहा था। परिजनों की सहमति के बाद करीब तीन घंटे तक जटिल सर्जरी चली। डॉक्टरों ने अपनी पूरी कुशलता झोंक दी और अंततः आसनी के पेट से 22 किलोग्राम का विशाल ट्यूमर सफलतापूर्वक बाहर निकाल लिया गया।डॉ. अर्जुन सक्सेना ने भावुक होते हुए बताया, मेरे 30 साल के लंबे सर्जिकल करियर में मैंने आज तक इतना बड़ा ट्यूमर नहीं देखा। यह न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि संभवतः देश के दुर्लभतम मामलों में से एक है।" यह ऑपरेशन सिर्फ एक ट्यूमर निकालना नहीं था, बल्कि एक बेटी को उसके घुट-घुट कर जीने वाले जीवन से आजादी दिलाना था।

अब लग रहा है जैसे नया जन्म हुआ हो

​ऑपरेशन के बाद जब आसनी को होश आया, तो उसके चेहरे पर जो सुकून था, वह किसी भी मेडल से बड़ा था। आसनी ने भारी मन से बताया, ऑपरेशन से पहले मेरा शरीर मेरा बोझ नहीं उठा पा रहा था। मुझे लगता था कि मैं अब कभी उठ नहीं पाऊँगी। लेकिन अब मुझे बहुत हल्का महसूस हो रहा है, जैसे मेरे ऊपर से कोई बहुत बड़ा पहाड़ उतर गया हो। फिलहाल आसनी सेमी-क्लोज आईसीयू में डॉक्टरों की निगरानी में है। उसकी हालत अब स्थिर है और वह जल्द ही अपने पैरों पर चलकर घर जा सकेगी। यह सफल सर्जरी चिकित्सा जगत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जिसने एक आदिवासी अंचल की बेटी को फिर से मुस्कुराने की वजह दी है।

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