किसान आँखों में चिंता और कर्ज की छाया,सरकारी मदद की गुहार
जबलपुर। खेतों में कभी हरी चादर की तरह लहलहाती मटर की फसल इस बार किसानों के लिए दुःख का सबसे बड़ा कारण बन गई है। लगातार बारिश, नमी और खतरनाक संक्रमण के चलते मटर के पौधे जगह-जगह सूखकर गिर रहे हैं। खेतों की इस बदहाली को देखकर किसानों में गहरी मायूसी फैल गई है। उनके मुताबिक, मेहनत भी गई, निवेश भी गया और अब उम्मीद भी टूटती जा रही है।
– किसानों की बेचैनी बढ़ी
ग्राम क्षेत्रों में मटर के खेतों का नज़ारा बेहद निराशाजनक है। कई जगह पत्ते पीले पड़ रहे हैं, कुछ खेतों में पौधे जड़ से गल चुके हैं और कई जगह पूरे-के-पूरे हिस्से सूखकर झड़ गए हैं। किसान बताते हैं कि मौसम की मार और संक्रमण इतना तेज़ है कि रोज़ नए-नए पौधे बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। किसान का दुःख यही है कि दुख जिन पौधों को सींच-सींचकर बड़ा किया, वो आँखों के सामने मर रहे हैं। दवा डालते हैं, लेकिन असर सुबह तक भी नहीं रहता।
-दवाओं का असर ज़ीरो, नई बुवाई भी नाकाम
किसान बाजार से महँगी दवाएँ खरीदकर कई बार स्प्रे कर चुके हैं, लेकिन नमी के कारण फफूंदी और बैक्टीरिया लगातार बढ़ते जा रहे हैं। जिन्होंने संक्रमित पौधों को हटाकर नई बुवाई की थी, वे भी अब ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। नई फसल भी उसी बीमारी की चपेट में आ चुकी है।
-कर्ज, नुकसान और अनिश्चितता
इस बार कई किसानों ने बीज, खाद और दवाओं में बड़ा निवेश किया था। उन्हें उम्मीद थी कि मटर की फसल पिछले नुकसान की भरपाई कर देगी। परंतु बीमारी ने जैसे उनकी उम्मीदों पर ही कुठाराघात कर दिया।अब हालत यह है कि बैंक और साहूकार का कर्ज सिर पर खेत खाली हैं। किसानों का कहना है कि इस नुकसान से उबरना आसान नहीं होगा।
-फसल में धब्बे बढ़े, पैदावार आधी होने का अनुमान
कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि लंबे समय तक नमी रहने से फफूंदी और रतुआ रोग तेज़ी से फैलता है। खेतों में जो काले और भूरे धब्बे दिख रहे हैं, वे संक्रमण का प्रमुख संकेत हैं। ऐसे पौधे दाना नहीं बना पाते और पूरे खेत की पैदावार आधी या उससे भी कम रह जाती है। किसानों ने प्रशासन से जल्द सर्वे कराकर नुकसान का आकलन करने और तत्काल मुआवजा देने की मांग की है। उनका कहना है कि इस बार सहायता नहीं मिली तो वे अगले सीजन की बुवाई भी नहीं कर पाएंगे।
