जांच आगे बढ़ी तो 2 दर्जन से अधिक आरक्षक आये घेरे में, 582 देयकों में 55 लाख का भुगतान, 20 आरक्षकों के खाते फ्रीज
जबलपुर। रांझी स्थित एसएएफ की 6वीं बटालियन में यात्रा भत्ता (टीए-डीए) घोटाले की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, नए-नए खुलासे सामने आते जा रहे हैं। प्रारंभिक जांच में अब तक करीब दो दर्जन से अधिक आरक्षक संदेह के घेरे में आ चुके हैं। इनमें 10 से अधिक ऐसे कर्मचारी शामिल हैं, जो दूसरे जिलों में ड्यूटी कर रहे हैं लेकिन उनके नाम से जबलपुर स्थित बटालियन में यात्रा भत्ता जारी किया गया। अब जॉच दल इन्हें बुलावा भेज रहा है ताकि जांच आगे बढ़ सके।अभी तक जांच में सामने आया है कि 20 से 25 आरक्षकों के खातों से संदिग्ध लेनदेन हुआ है। इन खातों में भारी मात्रा में यात्रा भत्ता राशि स्थानांतरित हुई है। खास बात यह है कि जिन आरक्षकों को बुलावा भेजा गया, उनमें से कुछ वे लंबे समय से जबलपुर बटालियन में तैनात ही नहीं थे।
50 फीसदी से अधिक भुगतान संदिग्ध खातों में
जांच रिपोर्ट के प्रारंभिक निष्कर्षों के अनुसार, देयक भुगतान में 50 प्रतिशत से अधिक राशि संदिग्ध खातों में ट्रांसफर की गई। बताया गया कि एक बाबू पिछले कई महीनों से आरक्षकों के खातों में फर्जी यात्रा भत्ता डालकर बाद में उन्हें कैश के रूप में वापस लेता था। जांच में यह भी सामने आया कि एक ही व्यक्ति द्वारा 2 साल में लगभग 60 लाख रुपये तक ट्रांसफर किए गए।जिले के अन्य बटालियन अधिकारियों की सीमा से बाहर जाकर किए गए लेनदेन पर भी गंभीर सवाल उठे हैं। अब तक 20 आरक्षकों के खाते फ्रीज कर दिए गए हैं।
6 सदस्यीय टीम गठित, रिकॉर्ड जब्त
इन्वेस्टिगेशन में जुटी 6 सदस्यीय जांच टीम ने बटालियन कार्यालय में पहुंचकर आरक्षकों के खाते, संबंधित दस्तावेज और ट्रांजैक्शन रिकॉर्ड जब्त कर लिए हैं। प्रारंभिक रिपोर्ट में सामने आया है कि 25 हजार से 55 हजार रुपये तक की राशि 30 से अधिक बार संदिग्ध खातों में स्थानांतरित हुई है। टीम ने अब तक 200 ट्रांजैक्शन की जांच पूरी कर ली है, जबकि 132 ट्रांजैक्शन अभी जांच के अधीन हैं। सूत्रों के अनुसार, 582 यात्रा भत्ता देयकों में 55 लाख रुपये से अधिक का भुगतान किया गया था। इनमें से लगभग 24.67 लाख रुपये संदिग्ध पाए गए हैं, जबकि 30.51 लाख रुपये वैध प्रतीत हो रहे हैं।
अभिषेक का सिर मिला ना मोबाइल
एक आरक्षक अभिषेक झारिया के खाते में 55 लाख रुपये आने का मामला सबसे ज्यादा विवादित है। उसकी मौत भी संदिग्ध बनी हुई है। उसका मोबाइल भी अब तक स्विच ऑफ है। बटालियन में मौजूद रिकॉर्ड के अनुसार, अभिषेक पिछले 15 दिनों से गैरहाजिर है। सूत्रों के अनुसार, उसके नाम पर किए गए भुगतान की जानकारी संदिग्ध है और इसमें किसी कर्मचारी की मिलीभगत की आशंका गहराई से जांची जा रही है। जांच अधिकारियों का कहना है कि यह घोटाला केवल एक वित्तीय अनियमितता नहीं, बल्कि संगठित नेटवर्क की संलिप्तता का संकेत देता है। रिपोर्ट तैयार होते ही कई बड़े अधिकारियों और कर्मचारियों पर निलंबन की कार्रवाई संभव है।
