दीवाली पर 'रिश्वत' लेने से बचें !



                                                                 व्यंग्यःखबर अभी तक

सरकारी अमले पर वैसे भी दाग कम नहीं हैं। बेचारे इतने बदनाम हैं कि इन पर कोई जरा सा भी यकीन नहीं करता। इन दिनों इन मासूमों  के साथ बड़ी धोखाधड़ी हो रही है। लोग दीवाली का लिफाफा देने आते हैं और पीछे से लोकायुक्त की टीम आकर दबोच लेती है। मजा ये है कि जब साल भर ये वाकई रिश्वत लेते हैं, तब इनका बाल बांका नहीं होता,लेकिन दीवाली के उपहार इनके लिए मुसीबत बने हुए हैं। सरकारी अमला जनता की सेवा में दिन-रात लगा रहता है और यदि इसके बदले में वो त्यौहार में कुछ लेता है तो उसे बुरा नहीं माना-जाना चाहिए,लेकिन नामुरादों को इतना धीरज कहां और पकड़ने वाले भी फुरसत ही बैठे हैं। एक बार रंगे हाथ पकड़े गये तो इस निर्दयी दुनिया में कौन सुनता है किसी की सपफाई। उस पर यदि मीडिया ने थोड़ी इज्जत बख्शी तो जीवन भर की सारी नेकियां बेकार हो जाती हैं और रिश्वतखोरी की जिल्लत नाम के साथ चिपक जाती है। कायदे से त्यौहार के मौके पर लोगों को ऐसा करना नहीं चाहिए। मगर किसी को कोई खुश देखना नहीं चाहता। त्यौहार के कुछ दिनों के लिए सरकारी मुलाजिमों को नजरअंदाज कर देना चाहिए,बल्कि एक राय तो ये भी है कि इन्हें सरकारी स्तर पर परमिशन भी दी जानी चाहिए कि अमुक तारीख से अमुक तारीख तक इस तरह का लेन-देने वैध माना जाएगा। ये नियम सिर्फ लेने-देने वाले कामों पर लागू होगा।  अब दीवाली पर जब कोई रंगे हाथ पकड़ा जाता है तो उसके घर वालों के दिल पर क्या बीतती होगी, ये अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। हालाकि, यही वे घर वाले हैं,जो इसी रिश्वत के पैसों से त्यौहार बनाने के सुहाने स्वप्न देख चुके थे। घूसखोरों को पकड़ने वाले डिपार्टमेंट और उसके कारिंदों को इन परिवारों की हाय भी लगेगी। लोगों को इतनी सी बात समझ में नहीं आती कि यदि घूसखोरी से संन्यास ही लेना होता तो कोई सरकारी नौकरी ज्वाइन ही क्यों करता। इतने सारे तनाव और जन सेवा का संकल्प कोई क्यों निभाएगा। जिस उपरी कमाई के लिए सरकारी नौकरी के लिए एड़ियां घिसी जाती हैं और जब वो मिल जाए तो रिश्वत भी न लें, ये कहां का इंसाफ है। ऐसे ही रिश्वतखोर पकड़ते रहे तो भविष्य में सरकारी नौकरी का चार्म कम होना तय है। हाल ही के कुछ मामलों में तो ऐसा भी हुआ कि जिस अदने से कर्मचारी को नोटांे के साथ रंगे हाथ पकड़ा गया, वो असल में सिर्फ एक मोहरा था,क्योंकि नोटों का बंडल तो बड़े साब के लिए दिया गया था। छोटा कर्मचारी फोकट में शहीद हो गया, बड़े साब अब कोई और मोहरा तलाश रहे हैं और तलाश ही लेंगे। उनके पास मोहरे कम थोड़े ही हैं। हालाकि, यदि सरकारी अमला एकमत हो जाए कि त्यौहार के मौके पर रिश्वत नहीं लेंगे तो भी बात बन सकती है। एक मशविरा तो ये भी है कि सरकारी अमले को रिश्वत अपने हाथ में लेनी ही नहीं चाहिए, कई सरकारी घाघ हैं,जो नौकरी के पहले दिन से खा-पी रहे हैं,लेकिन कोई अधिकृत दाग उन पर नहीं लग सका और ना ही लगेगा। सरकारी अमले को ट्रेनिंग देते वक्त ऐसे घाघों की सेवाएं ली जानी चाहिए। आखिर रिश्वत का आदान-प्रदान भी नौकरी का ही हिस्सा है,बल्कि ज्यादा अहम और ज्यादा प्रासंगिक। बहुत गहराई से देखा जाए तो सरकारी अमले को इस मुसीबत से बचाना हम सब की जिम्मेदारी है...।








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