डिस्कॉम्स के लिए विद्युत नियामक आयोग का
आदेश, जांच प्रक्रिया क्या होगी, ये स्पष्ट नहीं किया
जबलपुर। विद्युत नियामक आयोग ने एक आदेश जारी कर विद्युत वितरण कंपनियों(डिस्कॉम्स)के लिए बिजली कटौती के घंटे तय किए हैं। कटौती की सीमा यदि इन घंटों का पार करती है तो उपभोक्ताओं को कंपनी मुआवजे का भुगतान करेगी। आम आदमी इस आयोग के इस कदम से फूला नहींं समा रहा है,लेकिन जानकार इसे एक कागजी घोड़ा करार दे रहे हैं। कंपनियों को बिजली कटौती का दोषी कैसे करार दिया जाएगा और फिर आम शहरी को मुआवजा कैसे मिलेगा, ये आयोग ने स्पष्ट नहीं किया है। इसके अलावा भी कई पेंच हैं,जो इस कदर उलझे हुए हैं कि कंपनियों के अधिकारी आराम से बच जाएंगे।
-साल में कितनी बिजली कटौती वैध
आयोग ने 2025-26 के लिए संभागीय मुख्यालय, जिला मुख्यालय और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए बिजली आपूर्ति कटौती की अधिकतम सीमाएं तय की हैं। संभागीय मुख्यालय और अधिसूचित औद्योगिक क्षेत्र में अधिकतम 5 बार कटौती प्रति माहकी जा सकती हैं,जो पूरे माह में पांच घंटे की हो सकती हैं। जिला मुख्यालय में ये कटौती सीमा 25 की गयी है और घंटों की लिमिट 15 कर दी गयी है। एक लाख से अधिक आबादी वाले शहर में अधिकतम सौ बार कटौती, जो कुल 80 घंटे की हो सकती है। औद्योगिक क्षेत्रों के लिए 92 कटौती और 70 घंटे की सीमा है।
-नियमों की आड़ लेकर बचेंगे अफसर आयोग के इस फरमान से अफसरों पर शिकंजा कस जाएगा, ऐसा सोचने वालों को कंपनी के अन्य नियमों का गहन अध्ययन करना चाहिए। बिजली अफसरों के पास ऐसे कई रास्ते हैं,जिनका इस्तेमाल कर वे बिजली कटौती को भी बिजली सुधार सिद्ध कर सकते हैं। बिजली कटौती की हद पार करने के मामले में कैसे जांच की जाएगी और उसकी प्रक्रिया क्या होगी, ये भी सब धुंधला ही है। अभी भी उपभोक्ता लगातार शिकायत कर रहा है,लेकिन सुनवाई हो रही है, ऐसा दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है।
-कंपनी भी करे तो क्या करे
ये कहना भी सरासर गलत है कि कंपनी के अधिकारी बिजली कटौती करने पर आमादा रहते हैं। उनकी भी अपनी विवशताएं हैं। आयोग ने डिस्कॉम्स से उम्मीद की है कि वे अपने नेटवर्क को मजबूत करें और बिजली आपूर्ति की ऑनलाइन निगरानी करें ताकि परेशानियां कम से कम हों। इधर, अफसरों का कहना है कि आयोग ने फरमान तो जारी कर दिया है,लेकिन जमीनी स्तर की कठिनाईयां ऐसी नहीं हैं,जिनसे आसानी से निपटा जा सके।