पब्लिक के लिए बुरी खबरः अडानी,अंबानी और टाटा के हवाले होगी बिजली की बागडोर

 

केंद्रीय उर्जा मंत्रालय ने तैयार किया मसौदा,  जनवरी में शुरु होगा प्रथम चरण, बोतल से फिर निकला 2022 वाला जिन्न, पब्लिक की जेब पर बढ़ेगा बोझ, बिजली कंपनियां और सरकार की होगी मौज,कर्मचारियों के भविष्य पर भी बड़ा संकट

जबलपुर। जबलपुर सहित पूरे मध्यप्रदेश की जनता के लिए ये बुरी खबर है कि राज्य सरकार के अफसरों ने प्रदेश के बिजली इंतजामों को निजी हाथों में देने की तैयारी पूरी कर ली है। माना जा रहा है कि देश की दिग्गज कंपनियां अडानी, अंबानी और टाटा समूह, इनमें से किसी एक को प्रदेश की उर्जा की बागडोर दी जाएगी। केंद्रीय उर्जा मंत्रालय द्वारा तैयार किए गये मसौदे के मुताबिक, पब्लिक पर निजीकरण का भारी-भरकम बोझ एकदम से नहीं डाला जाएगा। शुरुआत मंे निजी कंपनियों को आंशिक रूप से बिजली वितरण का काम दिया जाएगा,जो धीरे-धीरे बढ़ाया जाएगा। बिजली कंपनियों के कर्मचारियों को इस प्रस्ताव की भनक लगने के बाद अब शक्ति भवन से लेकर भोपाल के  उर्जा मंत्रालय में बैठे अधिकारियों के बीच चर्चाएं सरगर्म हो गयी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे आम उपभोक्ता पर बिजली की कीमतों का भारी बोझ पड़ेगा और ग्रामीण व गरीब वर्ग की परेशानी और बढ़ेगी। घाटे के नाम पर किया जा रहा निजीकरण कई तरह की विसंगतियां लेकर आएगा।

-सरकारी कंपनियों का अस्तित्व संकट में

मसौदा विधेयक के अनुसार बिजली वितरण के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा लाने के नाम पर निजी कंपनियों कृ जैसे अदाणी एंटरप्राइजेजए टाटा पावरए टोरेंट पावर और सीईएससी कृ को खुली अनुमति दी जाएगी। इससे राज्य सरकारों की मौजूदा वितरण कंपनियों का एकाधिकार खत्म हो जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति असल में सरकारी कंपनियों को कमजोर करने और निजी कंपनियों के लिए बाज़ार खोलने की सोची.समझी रणनीति है। वर्तमान में देश के अधिकांश हिस्सों में बिजली वितरण का कार्य सरकारी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। केवल दिल्ली ;एनसीआरद्धए ओडिशाए महाराष्ट्र और गुजरात जैसे कुछ औद्योगिक राज्यों में निजी कंपनियों के हाथों में यह काम है। वहाँ उपभोक्ताओं को औसतन 20 से 35 प्रतिशत तक महंगी बिजली मिल रही है।

-चुनावी वादों से पल्ला झाड़ने की खुराफात

विश्लेषकों का कहना है कि सरकार इस योजना के जरिए चुनावी वादों की जिम्मेदारी से बचना चाहती है। जब बिजली निजी हाथों में होगीए तो सरकार आसानी से कह सकेगी कि ष्अब हमारे नियंत्रण में कुछ नहींष्। यह आम जनता से दूरी बनाने की रणनीति हैए जिसमें हर बढ़ी हुई यूनिट दर का ठीकरा कंपनियों पर फोड़ दिया जाएगाए जबकि अनुमति देने वाली नीति सरकार की ही होगी।यदि वितरण निजी कंपनियों के हवाले किया गयाए तो निश्चित रूप से उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी। निजी कंपनियों का प्राथमिक लक्ष्य मुनाफा कमाना होता हैए न कि जनसेवा। 

-2022 जैसे जनविरोध की संभावना

2022 में भी इसी तरह के एक प्रयास को राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों और कर्मचारियों के संगठनों ने कड़े विरोध के चलते रोक दिया था। अब दोबारा उसी प्रस्ताव को नए रूप में पेश किया जा रहा है। यदि यह लागू होता हैए तो देशभर में बिजली कर्मचारियों के साथ.साथ उपभोक्ता संगठन भी विरोध की राह पकड़ सकते हैं। निजी कंपनियों को मुनाफा और सरकार को जिम्मेदारी से मुक्ति मिलेगी, लेकिन उपभोक्ताओं के हिस्से में आएगी केवल महंगी बिजली और घटती पारदर्शिता।







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