नई दिल्ली। भारतीय जनजातीय समुदायों की बोली और भाषा की धरोहर को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। देश में पहली बार AI पर आधारित आदिवाणी ऐप (Adi Vaani App) का शुभारंभ किया गया है। यह ऐप न सिर्फ अनुवाद का साधन बनेगा, बल्कि आदिवासी समाज की मौखिक परंपराओं और सांस्कृतिक पहचान को भी सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाएगा।
इस ऐप के शुरुआती चरण में छत्तीसगढ़ की गोंडी, मध्यप्रदेश की भीली, झारखंड की मुंडारी और ओडिशा की संथाली बोलियों को जोड़ा गया है। दूसरे चरण में ओडिशा की कुई और मेघालय की गारो बोलियों को शामिल करने की योजना बनाई गई है। यह तकनीकी नवाचार IIT दिल्ली, बिट्स पिलानी, IIIT हैदराबाद और IIIT नवा रायपुर के शोधकर्ताओं की टीम ने मिलकर तैयार किया है।
गोंडी बोली के लिए 1,06,571 वाक्यों का अनुवाद और 17,500 वाक्यों की रिकॉर्डिंग का विशाल डाटाबेस तैयार किया गया है, जिसे आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, नवा रायपुर ने प्रमुख सचिव सोनमणी बोरा के निर्देशन में पूरा कराया।
भारत विविध भाषाओं और बोलियों का देश है। जनगणना 2011 के अनुसार, देश में लगभग 461 जनजातीय बोलियां प्रचलित हैं, जिनमें से 71 को विशिष्ट श्रेणी में माना गया है। इन बोलियों के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम डिजिटल युग भाषाओं संरक्षित करने जैसा है।
आदिवाणी ऐप के जरिए न सिर्फ शिक्षा और स्वास्थ्य परामर्श आसान होंगे, बल्कि सरकारी योजनाओं की जानकारी, लोककथाएं, मौखिक इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर भी भावी पीढ़ियों तक सुरक्षित पहुंच पाएंगी। साथ ही, यह ऐप जनजातीय समुदायों में डिजिटल साक्षरता और नागरिक भागीदारी को भी नई दिशा देगा।