नई दिल्ली. रेलवे बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को लेकर सभी रेल जोनों को एक अहम सलाह दी है। इसके तहत बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जिक्र किया है, जिसमें कोलकाता हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी गई, जिसमें चीफ लोको इंस्पेक्टर्स (सीएलआई) को उनकी रिटायरमेंट के लिए 55 प्रतिशत वेतन का लाभ देने का आदेश दिया गया था।
दरअसल, 18 मार्च 2025 को कोलकाता हाईकोर्ट ने सीएलआई को भी वह फायदा देने का फैसला सुनाया था जो ट्रेन चलाने वाले कर्मचारियों जैसे लोको पायलट और असिस्टेंट लोको पायलट को मिलता है। सीएलआई वे कर्मचारी होते हैं जो ट्रेन क्रू का प्रशिक्षण देते हैं और उनकी निगरानी करते हैं। उनका कहना था कि उन्हें भी उसी तरह का वेतन लाभ मिलना चाहिए, क्योंकि वे भी ट्रेन चलाने वालों के काम से जुड़े हैं।
बोर्ड ने हाईकोर्ट के फैसले का विरोध करने को कहा
लेकिन इसको लेकर अब रेलवे बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सभी जोनों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे मामलों में हाई कोर्ट के फैसले का विरोध करें और यह साबित करें कि सीएलआई को 55 प्रतिशत वेतन का लाभ देना सही नहीं है। बोर्ड ने बताया कि यह पहला मामला है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह का आदेश दिया है, लेकिन रेलवे का मानना है कि रनिंग स्टाफ और स्थिर स्टाफ में फर्क होता है।
रेलवे के ये हैं नियम
बता दें कि रेलवे के नियमों के अनुसार, जो कर्मचारी सीधे ट्रेन चलाने या उसके संचालन में लगे होते हैं, उन्हें उनके मुश्किल काम और खतरनाक परिस्थितियों के लिए वेतन का 55त्न हिस्सा अतिरिक्त दिया जाता है। सीएलआई को वरिष्ठ लोको पायलट के रूप में पदोन्नत किया जाता है और वे ट्रेन क्रू की निगरानी करते हैं, लेकिन वे ट्रेन चलाने वाले स्टाफ से अलग होते हैं।
मामले में रेलवे बोर्ड ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि रनिंग स्टाफ और स्थिर स्टाफ को एक समान वेतन लाभ देना सही नहीं होगा। ऐसा करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है, जो सभी को बराबरी का अधिकार देता है। इसलिए, बोर्ड ने कहा है कि जोनल रेलवे अपने कोर्ट केस में इस आदेश का सहारा लें और मंत्रालय की ओर से पूरी ताकत से अपना पक्ष रखें। वे इस आदेश को कोर्ट में अपनी दलीलों में भी पेश करें।