
27 मार्च 2013 को तिलवारा क्षेत्र निवासी विद्या बाई ने पति सुरेंद्र उपाध्याय की हत्या कर दी थी। सुरेंद्र आए दिन शराब पीकर गाली गलौज करता था। उस दिन भी उसने ऐसा ही किया। तिलवारा पुलिस ने विद्या बाई को धारा 302 एवं 201 के तहत गिरफ्तार कर जबलपुर जिला न्यायालय में पेश किया। 29 जून 2013 को अदालत ने उसे आजीवन कारावास और 70 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। विद्या बाई ने इस फैसले को चुनौती देते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में अपील दायर की। विद्या बाई की ओर से सरकारी वकील ने स्वास्थ्य स्थिति का हवाला देते हुए राहत की मांग की थी। जबलपुर जेल अधीक्षक द्वारा मामले में आवेदन देने के बाद आखिरकार हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए विद्या बाई को 10 हजार रुपए के निजी मुचलके पर रिहा कर दिया। जुर्माने की राशि विधिक सहायता के माध्यम से जमा की गई। विद्या बाई 29 जुलाई को अपने भाई के साथ घर (तिलवारा) चली गईं।
जेल में बिगड़ी तबीयत, इलाज कराया-
उम्र के साथ विद्या बाई चिड़चिड़ी होती गईं। साथ में रहने वाली महिलाओं, जेल अधिकारियों को गाली देने लगीं। धीरे-धीरे उसकी मानसिक स्थिति भी खराब होने लगी। जबलपुर मेडिकल कॉलेज में कई माह इलाज चला पर ठीक नहीं हुईं। जेल प्रबंधन उन्हें ग्वालियर भी ले गया लेकिन आराम नहीं मिल रहा था।
जेल के वरिष्ठ अधीक्षक ने हाईकोर्ट को लिखा पत्र-
जबलपुर केंद्रीय जेल के वरिष्ठ अधीक्षक अखिलेश तोमर ने हाईकोर्ट को पत्र लिखकर विद्या बाई की स्थिति से अवगत कराया। सरकारी वकील ने महिला की ओर से हाईकोर्ट में आवेदन प्रस्तुत किया। जिसमें बताया कि वह अत्यंत गरीब हैं और जमानत बांड भरने की स्थिति में नहीं हैं। जुर्माने की राशि विधिक सहायता के माध्यम से भर दी गई है। ऐसे में उन्हें निजी मुचलके पर रिहा करने का अनुरोध किया गया।
डिवीजन बेंच ने इसे दुर्लभ केस माना-
जस्टिस विवेक अग्रवाल व जस्टिस एके सिंह की डिवीजन बेंच ने मामले को दुर्लभ से दुर्लभ करार देते हुए गंभीरता से लिया और महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए उसे राहत दी। कोर्ट ने कहा कि यह मामला दुर्लभ से दुर्लभ की श्रेणी में आता है क्योंकि सजा के निलंबन के बावजूद अपीलकर्ता महिला पांच वर्षों से जेल में निरुद्ध रही। अंतत: अदालत ने महिला को 10 हजार रुपए के निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश देते हुए आवेदन का निराकरण कर दिया।
जेल प्रशासन ने किया भाई से संपर्क-
निजी मुचलके पर रिहाई की मंजूरी के बाद केंद्रीय जेल प्रशासन ने विद्या बाई के भाई से संपर्क किया। उसे बताया कि उसकी बहन को जमानत मिल गई है। तब वह आया और साथ लेकर गया। भाई मजदूरी करता है। उसने बताया कि उसके परिवार में पत्नी-बच्चे हैं। जिनका पेट भरना भी मुश्किल है। ऐसे में 70 हजार की जमानत नहीं दे सकता था। वहीं विद्या की बेटी की भी माली हालत खराब है। शुरूआत में वह अपनी मां से मिलने जेल जाया करती थी, बाद में उनसे मिलना छोड़ दिया। वह अपने ससुराल में है।