छग के जंगल में घायल हालत में मिली दुर्लभ प्रजाति की गिलहरी, न विभाग करा रहा है इलाज
धरमजयगढ़। छत्तीसगढ़ के धरमजयगढ़ के जंगल में उड़न गिलहरी घायल दशा में वनकर्मियों को मिली है। वन कर्मी उसे इलाज के लिए वन कार्यालय के रेस्क्यू सेंटर में ले आए हैं, जहां विशेषज्ञ इसका इलाज कर रहे हैं। बताया गया है कि धरमजयगढ़ वन मंडल अंतर्गत छाल वनपरिक्षेत्र के गड़ाईंन बहरी गांव के खेत में घायल अवस्था में उड़न गिलहरी को पड़ा हुआ देखा गया था। गांव से सटे इलाके में दुर्लभ वन्यजीव की सूचना ग्रामीणों ने दी थी। यह गिलहरी लुप्तप्राय जीव के रूप में सूचीबद्ध है। वन अमले ने स्वास्थ्य में बेहतरी के बाद उड़न गिलहरी को जंगल में छोड़ने की बात कही है। मौजूदा समय में उड़नगिलहरी को छाल रेंज में विभाग द्वारा सुरक्षित रखा गया है।
ये है उड़न गिलहरी
उड़ने वाली गिलहरी वैज्ञानिक रूप से टेरोमीनी या पेटौरिस्टिनी के रूप में जानी जाती हैं। स्कियुरिडे परिवार में गिलहरियों की 50 प्रजातियों की एक जनजाति है। अपने नाम के बावजूद, वे वास्तव में पक्षियों या चमगादड़ों की तरह पूरी उड़ान में सक्षम नहीं हैं। लेकिन वे पैटागियम की सहायता से एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर ग्लाइड करने में सक्षम हैं। यह एक रोएंदार त्वचा की झिल्ली है जो कलाई से टखने तक फैली होती है। उनकी लंबी पूंछ भी ग्लाइड करते समय स्थिरता प्रदान करती है। शारीरिक रूप से वे अन्य गिलहरियों के समान हैं, जिनमें उनकी जीवन शैली के अनुरूप कई अनुकूलन हैं। उनके अंग की हड्डियां लंबी होती हैं और उनके हाथ की हड्डियां, पैर की हड्डियां और दूरस्थ कशेरुक छोटे होते हैं। उड़ने वाली गिलहरी अपने अंगों और पूंछ के साथ अपने ग्लाइड पथ पर नियंत्रण रखने और उसे चलाने में सक्षम हैं।