जबलपुर । शहर में अली परिवार की आखिरी 4 पीढिय़ों में एक भी सदस्य ऐसा नहीं हुआ जिसे हॉकी से इश्क ना हुआ हो। पीढ़ी दर पीढ़ी सभी स्टिक और गेंद की जुगलबंदी में ऐसे रंग कि उन्होंने उसे ही सब कुछ बना लिया। 15 साल की उम्र से हॉकी खेलने की शुरुआत करने वाले 75 वर्षीय सैयद हैदर अली ने बताया कि उन्हें 1955 में पहला पुरस्कार नवीन विद्या भवन स्कूल द्वारा प्रदान किया गया था। बस यहीं से उन्हें पुरूस्कार मिलने शुरू हो गए थे। इसके पहले उनके पिता सैयद कुर्बान अली जोकि हॉकी और फुटबॉल खेल में पुरस्कार जीतकर लाते थे, उन्हें जीतते हुए देखकर हौसला बढ़ता गया और उन्होंने भी खेल में जीतने के लिए दिन रात एक करना शुरू कर दिया। साथ ही उनके बड़े भाई सैयद इसरार अली भी हॉकी के एक अच्छे खिलाड़ी थे । इसके बाद भी घर में हॉकी खेलना
खत्म नहीं हुआ बल्कि घर के 5 बेटों ने भी हॉकी खेलना शुरू कर दिया ।
राष्ट्रीय स्तर पर फहराया परचम
घर के बुजुर्गों को साथ उनके बेटों को पुरस्कार तो कई मिले साथ ही पुरस्कार में नौकरी भी मिलती गई। इस पीढ़ी में अशरफ अली, आरिफ अली, हसन अली, असलम अली और अफसर अली ने हॉकी खेल में राष्ट्रीय स्तर पर अपना हुनर दिखाया और ढेरों पुरस्कार और सम्मान पत्रों ने नवाज़े गए। अशरफ अली मध्य प्रदेश पुलिस, आरिफ अली आरपीएफ, हसन एवं असलम रेलवे और अफसर अली सीएजी में कार्यरत हैं। घर में सजे इन पुरस्कार पर जिसकी भी नजर जाती है नजर थम जाती है और मन खुश हो जाता है, यहीं इनका परिवार की असली पूंजी है । आज इन 5 बेटे के बेटों ने भी हॉकी खेलना शुरू कर दिया हैं ।
माता-पिता के संस्कार मैदान में आए काम
अशरफ अली ने बताया कि बचपन से ही पिताजी ने खूब हौसला दिया, बड़ा परिवार होने के बावजूद उन्होंने कभी रोक-टोक नहीं की। वहीं मां नफीसा बेगम ने बचपन से ही सभी में अच्छे संस्कार डालें जो मैदान में भी काम आए। हसन ने स्वीकार किया कि उन्हें हॉकी खेलने के लिए किसी प्रकार का दबाव कभी नहीं दिया गया। आज चौथी पीढ़ी के बच्चे भी हॉकी स्टिक लेकर मैदान में उतर गए हैं और हॉकी से लगाव हो गया है। चौथी पीढ़ी में भी 5 बेटों को आतिफ, हसनैन, नुमान, हाशिम, और अनस को हॉकी कि प्रशिक्षण उनके बड़े पिताजी अशरफ अली करा रहे हैं ।