जबलपुर। निजी नाभि में गंध है, मृग भटके बिन ज्ञान। इसी तर्ज पर संसार में कई चीजें ऐसी हैं, जिनका ज्ञान न होने से हम भटक रहे हैं। चारों तरफ गंध फैल जाती है किन्तु हमें ज्ञात नहीं हो पाता। संसारी प्राणी है, वह रूप-रस-गंध अथवा स्पर्श इन सभी को बाहर ढूंढता रहता है।
उक्ताशय के उद्गार आचार्य विद्यासागर महाराज ने दयोदय तीर्थ में धर्मसभा के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि चुनाव और नाव में फर्क जानते हो? चुनाव लड़ने का प्रतीक है, जबकि नाव पार होने में सहायक है। आपको क्या चाहिए? पार चाहिए तो चुनाव को गौंण कीजिए। ये चुनाव लोकसभा इत्यादि की बात नहीं है यहां, यहां तो पंचेन्द्रिय विषयों के चुनाव की बात है। वस्तुत: पंचेन्द्रिय विषयों में गाफिल नहीं होना ही मोक्षमार्ग का स्वरूप है। यही करते जाओ और आगे बढ़ते जाओ। एक दिन सही स्वरूप को पा जाओगे।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आप अनेक वस्त्र रखें, कोई बाधा नहीं पर चुनाव की प्रक्रिया न रखें। क्योंकि जो अनुकूलता व प्रतिकूलता है, उसका कोई ठिकाना नहीं है। सर्दी-गर्मी या मर्यादा को कायम रखना है, इसलिए वस्त्र का विकल्प रखें, पर उसमें चुनाव का विकल्प न हो। उसमें हर्ष-विषाद न करें। इतना भी यदि कर लें तो पंचम गुण स्थान की चर्या मानी जा सकती है। इसमें जितनी निर्दोषता आएगी, आज का श्रावक भी देव बनकर आगे मुक्ति का भाजक बन सकता है। इसलिए अपनी दृष्टि को अनमोल रखकर सुरक्षित रखें। विषयों में फंसें नहीं, जो फंसता नहीं वही ज्ञानी है। जो ऊपर-ऊपर ज्ञानी बनता है, वह चुनाव का ज्ञान तो रखता है, पर नाव का ज्ञान नहीं रखता।