जबलपुर. पश्चिम मध्य रेलवे में स्टाफ के साथ कार्यों में भेदभाव लगातार बढ़ता जा रहा है. यहां पर कहीं शंटिंग ड्यूटी से हटाकर कई स्टाफ को कंट्रोल में तैनात किया गया है तो कहीं पर बाबूगिरी कराई जा रही है. ये मामले पमरे के भोपाल व कोटा मंडल में सामने आये हैं.
इटारसी में शंटर की कमी, 5 की भोपाल में तैनाती, एलपीजी से शंटिंग
पहला मामला पमरे के भोपाल मंडल में सामने आयी है, जहां पर इटारसी में शंटर के पद पर पदस्थ 5 स्टाफ को भोपाल कंट्रोल आफिस में भेजकर काम कराया जा रहा है, जिसमें 2 महिला स्टाफ है. बताते हैं कि ये सभी पांचों संघ से जुड़े हैं. इन लोगों के कारण इटारसी में शंटिंग कार्य के लिये प्रतिदिन 6 लोको पायलट गुड्स को लगाया जा रहा है और उनके शंटर का कार्य कराया जा रहा है.
कोटा में एएलपी बांट रहे पटाखा, वॉकी-टॉकी
वहीं पमरे के कोटा मंडल में भी हाल ठीक नहीं है. यहां पर कर्मचारियों की कमी और संसाधनों के कुप्रबंधन का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। मंडल में सहायक लोको पायलट (एएलपी) के करीब डेढ़ सौ पद खाली पड़े हैं, इसके बावजूद दो दर्जन से ज्यादा एएलपी को ऑफिस में क्लर्क का काम सौंपा गया है, जिससे परिचालन और सुरक्षा दोनों प्रभावित हो रही हैं।
पद खाली, फिर भी स्टाफ का दुरुपयोग
कोटा रेल मंडल में कुल 650 एएलपी पद स्वीकृत हैं। इनमें से कोटा में 490 में से 363 और गंगापुर में 246 में से 236 एएलपी ही कार्यरत हैं। बयाना और मोतीपुरा हेडक्वार्टर में भी एएलपी की कमी है। इस कमी के बावजूद, कोटा, गंगापुर, बयाना और मोतीपुरा में करीब दो दर्जन एएलपी को क्लर्क, कॉल बॉय, टीएनसी (ट्रेन नंबर क्लर्क), और वॉकी-टॉकी तथा पटाखे बांटने जैसे गैर-परिचालन कार्यों में लगाया गया है। जबकि, ये काम मेडिकल फेल लोको पायलटों से भी करवाए जा सकते हैं।
ठेके के काम में भी लोको पायलट
एक और चौंकाने वाला खुलासा यह है कि रेलवे ने लाइन बॉक्स समेटने का काम ठेके पर दे रखा है, फिर भी कोटा में तीन मेडिकल फेल लोको पायलटों को इसी काम में लगा रखा है। अधिकारियों का मानना है कि डीआरएम की नाराजगी से बचने के लिए वे ठेकेदार के काम को खुद करवा रहे हैं। इसी तरह, वॉकी-टॉकी और पटाखे बांटने का काम भी अब एएलपी से करवाया जा रहा है.
कर्मचारियों में बढ़ा बोझ,रेलवे को हो रहा नुकसान
स्टाफ की कमी और एएलपी के गैर-जरूरी कामों में लगने से बाकी स्टाफ पर काम का बोझ बढ़ गया है। उन्हें समय पर छुट्टी और आराम नहीं मिल रहा है, और कई बार ड्यूटी निर्धारित समय से अधिक करनी पड़ रही है। इससे एएलपी की पदोन्नति भी प्रभावित हो रही है, और रेल संरक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा है। इसके अलावा, ऑफिस में बैठे रनिंग स्टाफ को रेलवे को हर महीने लाखों रुपये का माइलेज भत्ता देना पड़ता है, जिससे रेलवे को भी वित्तीय नुकसान हो रहा है।