खो रही 6.5 करोड़ साल पुराने जीवाश्म की चमक, विकास राशि 2 करोड़ हो गई लैप्स

 

घुघवा नेशनल फॉसिल्स
पार्क : ऐतिहासिक धरोहर उपेक्षा का शिकार

जबलपुर। मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले में स्थित घुघवा नेशनल फॉसिल्स पार्क देश का एकमात्र और एशिया का सबसे बड़ा जीवाश्म पार्क है। शहपुरा विधानसभा में आने वाला यह पार्क अपनी पहचान खोते जा रहा है। इसके संरक्षण की दिशा में लापरवाही बरती जा रही है। पार्क के अंदर रखे फॉसिल सुरक्षित रहे इसके लिए यहां फैंसिंग की गई थी जो जगह-जगह टूट चुकी है। इस नेशनल पार्क में मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है। जिन्हे दुरुस्त करने वन विभाग आगे नहीं आ रहा। जिस वजह से यह पर्यटकों से दूर होता जा रहा है। हैरत की बात यह है कि इतने बड़े पार्क में सीसीटीवी कैमरे तक नहीं है। नेशनल पार्क की इस दुर्दशा को दूर करने को लेकर जब रेंजर जगदीश वाशपे से सवाल किए गए तो वे बचने की कोशिश करने लगे। उनका कहना था कि विजन 2047 के तहत पार्क के आधुनिकरण और इंफ्रा स्ट्रक्चर के लिए प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है। इससे स्पष्ट है कि जब तक बजट नहीं मिल जाता तब तक इसकी दुर्दशा में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है।

 6.5 करोड़ साल पुराने जीवाश्म

पार्क में तैनात महिला वनपाल श्यामा उलाड़ी और वनरक्षक प्रियंका टेकाम ने बताया कि यह पार्क 6.5 करोड़ साल पुराने वृक्षों के जीवाश्मों को संजोए हुए है, लेकिन प्रशासन की अनदेखी, सुविधाओं की कमी और सुरक्षा व्यवस्था के अभाव के कारण अब यह पर्यटन मानचित्र से लगभग गायब हो चुका है। जानकार बताते हैं कि घुघवा नेशनल फॉसिल्स पार्क को अपग्रेड करने के लिए केंद्र सरकार ने करीब 2 करोड़ रुपये जारी किए थे, लेकिन वन विभाग और प्रशासन की लापरवाही के चलते यह राशि लैप्स हो गई। समय पर जरूरी दस्तावेज नहीं बनने के कारण पार्क का जीर्णोद्धार अधूरा रह गया। 

सुरक्षा व्यवस्था बदहाल, चोरी का खतरा

पार्क में सीसीटीवी कैमरों की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे फॉसिल्स चोरी होने का खतरा हमेशा बना रहता है। इससे पहले भी यहां चोरी की घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन सुरक्षा को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। पार्क के चारों ओर फेंसिंग (बाड़) जरूर लगी है, लेकिन स्थानीय ग्रामीण इसे तोड़कर अंदर प्रवेश कर जाते हैं और वनस्पति की तलाश में यहां-वहां खुदाई कर देते हैं, जिससे जीवाश्मों को नुकसान पहुंचता है। इसके अलावा शाम होते ही पार्क के भीतर अंधेरा छा जाता है, क्योंकि लाइट की कोई व्यवस्था नहीं है। 

न रुकने और न खाने के इंतजाम

पार्क में न तो पर्यटकों के रुकने की सुविधा है और न ही खाने-पीने का कोई इंतजाम। वर्षों से कैंटीन बंद पड़ी है, क्योंकि टेंडर पास नहीं हो रहा। गेस्ट हाउस होते हुए भी आम पर्यटकों को रहने की अनुमति नहीं है, यह केवल अधिकारियों के लिए खुलता है।

बच्चों के मनोरंजन गार्डन की बदहाली

बच्चों के लिए बनाए गए गार्डन की हालत खराब हो चुकी है। झूले और अन्य मनोरंजन के साधन टूट चुके हैं, जिससे यहां आने वाले परिवारों को निराशा होती है।

इतिहास और वैज्ञानिक महत्व

इस पार्क की खोज डॉ. धर्मेंद्र प्रसाद और डॉ. राम प्रसाद ने की थी और 5 मई 1983 को इसे राष्ट्रीय जीवाश्म उद्यान घोषित किया गया। यह 27.24 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है और यहां डायनासोर युग के पौधों के जीवाश्म भी मिले हैं। यहां नारियल, यूकेलिप्टस और अन्य दुर्लभ वृक्षों के जीवाश्म मौजूद हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, यूकेलिप्टस मूल रूप से ऑस्ट्रेलिया का पौधा है, लेकिन इसका यहां पाया जाना महाद्वीपीय बदलाव का प्रमाण है।

संरक्षण के लिए मिली राशि हुई लैप्स

घुघवा नेशनल फॉसिल्स पार्क को अपग्रेड करने के लिए केंद्र सरकार ने करीब 2 करोड़ रुपये जारी किए थे, लेकिन वन विभाग और प्रशासन की लापरवाही के चलते यह राशि लैप्स हो गई। समय पर जरूरी दस्तावेज नहीं बनने के कारण पार्क का जीर्णोद्धार अधूरा रह गया।

स्टाफ की भारी कमी

पूरे पार्क में मात्र 6 कर्मचारी (3 चौकीदार, 2 महिला वन गार्ड और 1 वनपाल) कार्यरत हैं, जो इतने बड़े क्षेत्र की देखभाल के लिए बेहद कम हैं

धरोहर अपनी चमक खो रही

घुघवा नेशनल फॉसिल्स पार्क पर्यटन और वैज्ञानिक शोध की अपार संभावनाओं से भरा हुआ है, लेकिन सरकारी उदासीनता और लापरवाही के चलते यह धरोहर धीरे-धीरे अपनी चमक खो रही है। अगर प्रशासन जरूरी कदम उठाए और सुविधाओं को विकसित करे, तो यह पार्क मध्य प्रदेश के पर्यटन मानचित्र पर एक नई पहचान बना सकता है।

इस दिशा में देना चाहिए ध्यान

पर्यटन और रोजगार – अगर सरकार इस पार्क को सही तरीके से विकसित करे, तो यह न केवल देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़ा सकता है।

 वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा – यहां मिलने वाले दुर्लभ जीवाश्मों के चलते देश-विदेश के वैज्ञानिक और शोधकर्ता इस क्षेत्र में रुचि रखते हैं। सरकार को इसे एक शोध केंद्र के रूप में विकसित करना चाहिए।

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