दर्जी ने ब्लाउज की सिलाई करने में की देरी तो कोर्ट ने लगाया 11,500 रुपये का जुर्माना

अहमदाबाद. गुजरात के अहमदाबाद में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है. यहां एक साधारण सिलाई का ऑर्डर कानूनी लड़ाई में बदल गया जब दर्जी समय पर और वादे के मुताबिक ब्लाउज नहीं पहुंचा पाया. उपभोक्ता अदालत ने ग्राहक के पक्ष में फैसला सुनाया और मुआवजा और पैसे वापस करने का आदेश दिया, जिससे भारत में उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी.

अंकुर इलाके की निवासी, शिकायतकर्ता पूनमबेन पारिया ने नवंबर 2024 में सीजी रोड स्थित सोनी, द डिजाइनर शॉप से एक डिजाइनर ब्लाउज सिलवाने के लिए संपर्क किया था. यह ब्लाउज 24 दिसंबर, 2024 को होने वाली एक करीबी रिश्तेदार की शादी में पहना जाना था. पूनमबेन ने 4,395 रुपये अग्रिम भुगतान कर दिए थे, उम्मीद थी कि ब्लाउज समारोह से एक हफ्ते पहले तैयार हो जाएगा.

क्यों हुआ विवाद?

जब पूनमबेन अपना ब्लाउज लेने दुकान पर गईं, तो उन्होंने पाया कि वह न तो समय पर तैयार हुआ था और न ही तय डिजाइन के अनुसार बना था. तैयार ब्लाउज में कथित तौर पर दाग और डिजाइन की खामियां दिखाई दे रही थीं, जिससे वह हैरान और निराश हो गईं. दर्जी द्वारा समस्याओं को ठीक करने का आश्वासन दिए जाने के बावजूद, अतिरिक्त समय दिए जाने के बाद भी वह ब्लाउज नहीं पहुंचा सका.

मामला बुटीक से कोर्टरूम पहुंचा

कोई विकल्प न होने के कारण, पूनमबेन को शादी में एक अलग पोशाक और उससे मेल खाते आभूषण पहनने पड़े. उन्होंने याद करते हुए कहा कि कैसे दर्जी की लापरवाही के कारण खुशी का एक पल किरकिरा हो गया. शादी के बाद, पूनमबेन ने अग्रिम भुगतान वापस करने की मांग की. दर्जी ने मना कर दिया, कथित तौर पर उनसे कहा कि वह ब्लाउज ले सकती हैं, लेकिन उनके पैसे वापस नहीं मिलेंगे.

इसलिए दर्ज कराई शिकायत

अपने साथ हुए अन्याय को महसूस करते हुए, उन्होंने जून 2025 में अहमदाबाद जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में शिकायत दर्ज कराने का फैसला किया. सुनवाई के लिए बुलाए जाने के बावजूद, दर्जी शुरू में आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ. सुनवाई और मामले की जांच के बाद, आयोग ने दर्जी को सेवा में कमी का दोषी पाया और पूनमबेन के पक्ष में फैसला सुनाया.

कोर्ट ने दिया मुआवजे का आदेश

आयोग ने दर्जी को 4,395 रुपये की अग्रिम राशि 45 दिनों के भीतर 7 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ चेक द्वारा वापस करने का आदेश दिया. इसके अलावा, दर्जी को मानसिक परेशानी के लिए 5,000 रुपये और कानूनी खर्च के लिए 2,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया, जिससे कुल राशि लगभग 11,500 रुपये हो गई. फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए, पूनमबेन ने कहा, यह पैसे की बात नहीं थी, बल्कि सही के लिए खड़े होने की बात थी. उपभोक्ता होने के नाते, हमारे साथ अन्याय नहीं होना चाहिए. मुझे खुशी है कि अदालत ने हमारी बात सुनी और न्याय दिया. यह फैसला दूसरों को भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने के लिए प्रोत्साहित करेगा.

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